शाहिद अंसारी
मुंबई : मुंबई हाईकोर्ट के जस्टिस अभय ओक ने एक रिटाएर्ड फौजी को उसका हक न देने की वजह से महाराष्ट्र सरकार को यह आदेश दिया है कि वह फौजी को एक महीने के अदंर पचास हजार रूपए बतौर मुआवज़ा अदा करें। हाईकोर्ट ने उसके साथ साथ राज्य सरकार को यह आदेश दिया है कि फौजी इंदूराव इंगले को दिसंबर 1971 के जीआर के अनुसार रहने और खेती करने की जगह तीन महीने के अंदर उन्हें मुहय्या कराऐं।
फौजी की ओर से मामले की कानूनी लड़ाई लड़ने वाले एडोकेट राजेश्वर पांचल ने बताया कि फौजी इंदूराव इंगले को उनका हक न मिले इसलिए महाराष्ट्र सरकार ने जी तोड़ कोशिश की और अपना तर्क भी रखा लेकिन कोर्ट के सामने उनका तर्क नहीं टिका इसलिए कोर्ट ने फौजी को उसका हक देने के साथ साथ उसे मुआवजा अदा करने के लिए भी कहा है। राज्य सरकार इस पर अमल करती है या नहीं इसलिए कोर्टने अगली सुनवाई भी 28 अप्रैल को रखी है ताकि पहले के जैसे अगर सरकार कोर्ट के आदेशों पर अमल नहीं करती तो फिर से उसपर कार्रवाई की जा सके।
इस से पहले भी मुंबई हाई कोर्ट ने 1971 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध लड़ने वाले महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के रहने वाले 70 वर्षी (रिटाएर्ड) फौजी हिंदूराव इंगले को लेकर मुबंई हाई कोर्ट के ही जस्टिस अभय ओक की बेंच ने ही यह फैसला सुनाया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गवरमेंट रेज़ुलेशन 1971 और 1998 के तहेत इंगले को 10 एकड़ सरकारी जगह प्रदान की जाए कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को 2 महीने का समय दिया है और सरकार को यह भी हिदायत दी कि 2 महीने में इसकी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करें। लेकिन सरकार ने इस पर अमल नहीं किया था जिसपर फौजी ने फिर कोर्ट से गुहार लगाई थी।
लंबे समय से राज्य और केंद्र सरकार से गुहार लगाने के बाद इंगले को राहत नहीं मिली। 40 साल तक उम्मीद लगाए बैठे रहने के बाद केंद्र सरकार से 5 सितंबर 2005 को उन्हें एक पत्र आया जिस में लिखा था कि उनकी कोई मदद नहीं की जा सकती मामले को चुनौती देते हुए उन्होंने मुंबई हाईकोर्ट में दस्तक दी थी। कोर्ट ने पहली बार 24 अप्रेल 2015 को सुनवाई करते हुए मामले को गंभीरता से लिया। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील ने कोर्ट से समय मांगते हुए कहा कि वह इस बारे में सरकार से बातचीत करेंगे। कोर्ट में इस मामले को देख महाराष्ट्र सरकार हरकत में आई और उस दौरान इंगले को एक पत्र मिला जिसमें सतारा के तहसीलदार ने इंगले को कहा कि वह सरकार द्वारा दी जाने वाली ज़मीन का मुआएना कर लें लेकिन बाद में फिर सरकार इससे पलट गई।
इंगले ने 1971 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी जिसमे उन्हें 3 गोलियां लगीं थी उसकी वजह से वह अपाहिज हो गए।देश की सेवा करने वाले इंगले को एक सहारा उनका बेटा है लेकिन उसकी भी मानसिक स्तिथि बेहतर नहीं है जो बयां करने लाएक नहीं है आज उनकी आर्थिक स्तिथि बहुत खराब हो गई है। अपने अधिकार के लिए लड़ते लड़ते उम्र के इस दौर में उन्हें पेंशन भी नहीं मिल रही जिसकी वजह से उन्हें बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। तंगी हालत में वह आकर कोर्ट मे बैठे रहते थे क्योंकि वह पहले से अपनी पेंशन के लिए कोर्ट में गुहार लगा रहे थे इस दौरान राजेश पांचल की नज़र उन पर पड़ी पूछताछ में उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई जिसके बाद पांचल ने उनकी सहायता करते हुए उनके अधिकार की लड़ाई मुफ़्त में लड़ी।हालांकि यह काम सरकार का है कि वह किसी फौजी के अधिकार के लिए लड़े लेकिन सरकार का रवय्या एक फौजी के लिए क्या है यह कोर्ट में देखने को मिला। पांचल ने बताया कि पेंशन न मिलने से वह फौजियों की कैंटीन से मिलने वाली शराब खरीदकर बेचते थे और उससे अनाज खरीदकर अपना गुजारा करते हैं जिसके बाद पिछले डेढ़ साल से पांचल ही उनकी आर्थिक सहायता करते हैं।
राज्य सरकार द्वारा बनाए गए इस नियम के तहेत युद्ध में शामिल होने वाले फौजी अगर युद्ध के दौरान ज़ख्मी होते हैं या उन्हें मेडल मिलता है तो राज्य सरकार की तरफ से उन्हें 10 एकड़ की जगह दी जाती है।इंगले के वकील राजेश पांचल ने कहा कि सरकार के ज़रिए बनाए क़ानून के मुताबिक जिस जगह के फौजियों को यह अधिकार मिलना चाहिए उस इलाके के कलेक्टर की यह ज़िम्मेदारी होती है कि वह खुद पता लगा कर फौजियों को घर जा कर उन्हें इस से आवगत कराए और उन्हें सरकार द्वारा 10 एकड़ की जगह दी जाती है वह उनके सुपुर्द करे लेकिन सरकार को फौजियों की हालत से कोई लेना देना नहीं।जो व्यक्ति देश की रक्षा करने में अपनी जान की बाज़ी लगा देता है उसके साथ सरकार का यह रवय्या यह सोचने पर मजबूर करता है कि फैजियों के दुशमन पड़ोसी देश हैं या खुद अपनी सरकार। यह कोई पहला मामला नहीं है जब फौजियों के परिवार वालों को या खुद फौजियों को अपने अधिकार पाने के लिए धक्के खाने पड़े हों।इस से पहले भी महाराष्ट्र के रत्नागिरी के रहने वाली इदिरा जाधव के पति भी उसी युद्ध मे मारे गए उन्हें लालबहादुर शास्त्री का पत्र आया था लेकिन उन्हें भी कुछ नहीं मिला अपने अधिकार के लिए जब उन्होंने कोर्ट में दस्तक दी तो राज्य सरकार को उनका हक़ देने के लिए मजबूर होना पड़ा।ताज्जुब इस बात का कि इस मामले में जब रक्षा विभाग ने कोर्ट मे अपनी दलील पेश की तो वहां उन्होंने यह तक कह दिया कि इंगले फौज में थे इस बात का उनके पास रिकार्ड ही नहीं है। इंगले ने Bombay Leak से बातचीत करते हुए कहा कि इतनी तकलीफ़ तो दुशमनों के साथ लड़ने में नहीं हुई जितना अपने अधिकार को पाने में हुई है अभी एक जीत हुई है लेकिन अभी भी लड़ाई जारी है और इंसाफ़ बाकी है क्योंकि अब तक उन्हें पेँशन नहीं मिल रहा।
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