शाहिद अंसारी
वाराणसी: 26 /11 के हमलों ने न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के सामने आतंक का सबसे घिनावना चेहरा लोगों के पाकिस्तान ने दिखाया। इस हादसे में सैकड़ों लोग घायल हुए और कई लोगों को जान से भी हाथ धोना पड़ा। इनमें से एक है शीतल यादव, जो उस वक्त महज़ तीन माह की थी जिसे कस्साब के ज़रिए फेके गे बम का शिकार होना पड़ा। शीतल के सीने में बम के कई छर्रे दाखिल हो गए थे जिसके बाद शीतल को 15 दिन के लिए जेजे में एडमिट किया गया था।
इस नन्ही आखों ने आतंक का वो मंज़र देखा है जो इस देश की तारीख में सबसे काला दिन था। फिलहाल शीतल की उम्र 9 साल है वह वाराणसी के हैप्पी मार्डन स्कलू में तीसरी क्लास में पढ़ती है और वह बड़ी हो कर डाक्टर बनना चाहती है।
नन्ही से जान को शायद आतंक की भेट चढ़े अपने पिता के बारे में नहीं पता कि वह अब इस दुनिया में नहीं रहे। शीतल हमेशा अपनी मां से आतंक की भेट चढ़े उसके पिता के बारे में पूछती है उसे यही लगता है कि मुंबई में उसके पिता रहते हैं और वह एक दिन जरूर उसके घर वापस आऐंगे।
शीतल की मां सुनीता यादव बताती हैं कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुई हमले का दर्द हर भारतीय के ज़हन में है लेकिन इस नन्ही आंखों ने खौफ का वो मंज़र देखा है जिसका दर्द हमेशा ही उन्हें सताता रहता है। 26 नवंबर 2008 की मनहूस रात शीतल यादव अपने पिता उपेंद्रे यादव और मामा के सीएसटी पर गांव जाने के लिए तय्यार थीं सी दौरान कस्साब की फायरिंग में शीतल के पिता की मौत हो गई शीतल भी गंभीर रूप से जख्मी थी उस दौरान मुबंई के जेजे हास्पिटल में उसका एलाज किया गया यह तस्वीर उसी जेजे हास्पिटल की जब शीतल जिंदगी और मौत से जूझते हुए अपनी मुस्कुराहट बरकरार रखी थी। शीतल के पिता का ट्रेन का सफर शुरु होने से पहले ही जिंदगी का सफर खत्म होगया था और उसी दौरान शीतल के बड़े पापा ने मुआवज़े की रकम लेकर गांव भाग गए जिसके बाद मामला में पुलिस ने दखल दी और उन्हें मुआवजे की रकम मिली फिलहाल शीतल की मां उत्तर प्रदेश में रेल्वे विभाग में नौकरी कर रही हैं।
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