मुंबई:120 करोड़ की थी आस मिला केवल 40 करोड़
विक्रांत के खरीदार अब्दुल करीम ने बताया कि हमारी पूरी लागत 90 करोड़ तक पहुंच गई थी हमने उम्मीद लगाई थी कि हमें कबाड़ में इसे तकरीबन 120 करोड़ रूपए तक बेचेंगे।लेकिन बेचने के बाद मात्र 40 करोड ही आए।इस तरह से फाएदा तो दूर की बात जो रक़म लगाई गई थी उसमें 50 करोड़ का नुकसान हुआ।और यह नुकसान पहली बार हुआ है।क्योंकि इससे पहले हमने 150 से ज़्यादा माल वाहाक, टैंकर जहाज़,कमरशियल,प्राइवेट समुंद्री जहाज़ ख़रीद कर उन्हें कबाड़ में बेचा कभी नुकसान नहीं हुआ।लेकिन विक्रांत को खरीदने के बाद जिस तरह से कोर्ट और दूसरी प्रक्रिया मे समय लगा उसकी वजह से हमे ज़बरदस्त घाटा हुआ।विक्रांत का कबाड़ तकरीबन 50 से ज़्यादा लोगोंको बेचा गया।
अब्दुल करीम ने अबतक 150 से ज़्यादा जहाज़ो को खरीद चुके लेकिन उन्हें कभी नुकसान नहीं हुआ।तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर देश के सबसे बड़े जंगी बेड़े को खरीदने के बाद आखिर 50 करोड़ का कैसे नुकसान कैसे होगया।
दरअसल विक्रांत की जब नेवी ने ऑनलाइन नीलामी की तो पूरे देश में विक्रांत बचाओ की मुहिम शुरू होगई और उसके बाद संबंधित विभाग नें लोगों की डर की वजह से एन.ओ.सी देने के लिए आना कानी करने लगे।क्योंकि हर विभाग को इस बात का डर था कि कहीं उनकी ओर से एन.ओ.सी देने का अंजाम उनको ना भुगतना पड़ें लेकिन नवसेना और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन सारे विभागों को मजबूरन एन.ओ.सी देनी पड़ी और इसका खमियाज़ा खरीदार को भुगतना पड़ा।क्योंकि इन सब के चक्कर में लंबा समय चला गया।इस दौरान विक्रांत को सुरक्षित रखना और उसे किसा तरह का नुकसान ना पहुंचना यह खरीदार की जिम्मेदारी थी।क्योंकि समय लगने के वजह से उसे तोड़ने और दूसरी प्रक्रिया करने के चक्कर में विक्रांत की कीमत आसमान से ज़मीन पर आगई।और नवसेना के ज़रिए पहले ही सामान निकाल लेने की नजह से काफ़ी ज्यादा वज़न कम होगया और यही वजह रही कि विक्रांत के खरीदार को यह सौदा महंगा पड़ा।
खरीदा 14600 टन का निकला 9000 टन
विक्रांत को जब अब्दुल करीम ने ख़रीदा तो उस वक्त इसका वज़न 14600 टन था।लेकिन बाद में इसका वज़न किया गया तो यह 9000 टन ही निकला।उसकी वजह यह थी कि नवसेना ने विक्रांत पर मौजूद सारी ख़ास और ऐंटिक अवज़ार और दूसरी क़ीमती वस्तुऐं निकाल लीं।जिसके बाद इसका वज़न 14600 टन से घटकर 9000 टन रह गया।खरीदार को यहीं सबसे बड़ा चूना लग गया।पहले कोर्ट और एनओसी में गया 6 महीने का समय और फिर विक्रांत पर मौजूद 5600 टन का सामान निकाल नेवी के निकाले जाने के बाद इसका नुकसान ख़रीदार को हुआ।
क्या थे विक्रांत पर क़ीमती सामान
विक्रांत एक लंबे समय तक म्युजियम के रूप देखा गया नवसेना ने हर साल इसे जंता को देखने के लिए रखती थी।इसपर 100 से ज्यादा इस कीमती सामान थे जिनमें मोटर बोट,वाटर पंप,कई तरह के इंजन,सी हॉक एय़र क्राफ्ट,गन पोड,राकेट पोड,मीज़ाइल,कई तरह की गन,फाएर फाटिंग जैसे अवज़ार और हथियारों समेत और भी कई तरह की क़ीमती वस्तुऐं थे।जिसे अब नौसेना संग्राहलय में रखा गया है।नवसेना के ज़रिए विक्रांत से निकाले गई वस्तुओं का वज़न 5600 था।जबकि खरीदारी के समय विक्रांत का वज़न 14600 था।इस फर्क की वजह से विक्रांत को खरीदने वाले अब्दुल करीम को ज़बरदस्त घाटा हुआ।
नीलामी का इतिहास
भारतीय नवसेना ने आईएनएस विक्रांत की जनवरी 2014 में नीलामी के लिए ऑनलाइन आवेदन लेना शुरू किया।इस ऑनलाइन आवेदन में मुंबई के आई.बी.कॉमर्शियल प्राइवेट कंपनी ने अप्रैल में 63 करोड 2 लाख रूपए की बोली लगाई थी।इसकी घोषणा जैसे ही भारतीय नवसेना ने की देश भर में विक्रांत को बेचने की ख़बर जंगल की आग की तरह फ़ैल गई।लेकिन खरीदारी की यह प्रक्रिया पूरी होचुकी थी और 14 मई 2014 को ही नवसेना ने इसे मजगांव स्तिथ दारूखाना शिप ब्रेकिंग यार्ड मे लेजाने की मंजूरी दे दी थी।लेकिन विक्रांत बचाव समिति की याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट में 5 मई को इस पर रोक लग गई थी।जिसके बाद आई.बी.कॉमर्शियल प्राइवेट कंपनी के मालिक अब्दुल करीम ने नवसेना से अपने पैसे वापस मांगे लेकिन नवसेना ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर आगाह किया कि विक्रांत को हम 30 मई के बाद से हम 6 महीने तक नवसेना के प्लेटफ़ार्म से नहीं हटा सकते।क्योंकि बारिश के मौसम को देखते हुए ऐसा करना संभव नहीं होगा।दूसरी सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि विक्रांत के खड़े होने की वजह से हम दूसरी जहाज़ों को उस जगह पर नहीं खड़ा कर सकते।क्योंकि जगह की कमी और बारिश के चलते विक्रांत के साथ साथ दूसरी बड़ी जहाज़ों को भी समस्स्या पैदा होगी।सुप्रीम कोर्ट ने नवसेना के जरिए दिए गए पत्र के बाद इसे एक जगह से दूसरी जगह पर शिफ्ट करने की इजाज़त दे दी।30 मई को विक्रांत को मजगांव स्तिथ दारूखाना शिप ब्रेकिंग यार्ड शिफ्ट किया गया।लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केवल विक्रांत की जगह बदलने के लिए कहा जबकि उसे किसी भी तरह से तोड़ने के लिए मना किया था।यह मामला कोर्ट मे चल रहा था 13 अगस्त 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने इसे तोड़कर कबाड़ में बेचने की इज़ात दे दी।इस तरह से खरीदारी करने के बाद व्यापारी अब्दुल करीम को विक्रांत को तोडकर कबाड़ में बेचने की इजाज़त मिलने में 4 महीने का लंबा समय लग गया।
इसे तोड़कर कबाड़ मे बेचने के लिए तीन विभाग की एन.ओ.सी की ज़रूरत पड़ती है जिसमें कस्टम,प्रदूषण और आख़िर में बीपीटी की।लेकिन बीपीटी से पहले इन दोनों विभागों से एन.ओ.सी की पहले ज़रूरत पड़ती है और यही दोनों एन.ओ.सी बीपीटी में जमां करनी पड़ती है।विक्रांत के खरीदार अब्दुल करीम ने कहा कि उन्हें प्रदूषण की एन.ओ.सी मिलने में 3 महीने लग गए जबकि यह मात्र तीन दिन का काम था।इस तरह से कोर्ट और प्रदूषण की एन.ओ.सी मिलने में 6 महीने का लंबा समय लग गया।
विक्रांत बचाव समिति ने लंबे समय से विक्रांत को बचाने की लड़ाई जारी रखी थी।मामला सुप्रीम कोर्ट मे पहुंचने के बाद विक्रांत बचाव समिति के लोगों के उस वक्त निराशा हाथ लगी जब सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे तोडने और कबाड़ खाने में भेजने का आदेश इस नुकसान के बाद एडोकेट शेखर जगताप ने कहा कि विक्रांत को लेकर नवसेना का जो रवय्या था उससे तो पहले से ही ज़ाहिर होगया था कि नवसेना खुद इसे कबाड़ खाने में भेजकर अपना खज़ाना भरने की कोशिश की लेकिन जिसे बेचा गया उसका खज़ाना खाली होगया।क्योंकि विक्रांत के लिए किसी ने भी बेहतर नहीं सोचा इसलिए उनके साथ भी बेहतर नहीं हुआ।
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