शाहिद अंसारी
मनमाड़:अवैध रेत माफ़िया फिर एक बार सुर्खियों में है लेकिन इस बार कुछ दूसरे तरीके से है इस बार घटना स्थल पर कार्रवाई को लेकर कम,विभागीय अधिकार क्षेत्र और कर्तव्य मे लापरवाही को लेकर ज़्यादा।कहानी मनमाड से जुड़ी हुई है मनमाड के उप विभागी पुलिस अधिकारी राहुल खाडे को राजस्व विभाग के साथ काम साझा करने की इच्छा ने तना बेक़रार करदिया कि उन्होंने बाक़ायदा राजस्व विभाग के उप विभागयी दंडअधिकारी को एक पत्र द्वारा अवैध रेत यातायात पर पाबंदी लगाने एवं कार्रवाई करते समय पुलिस बंदोबस्त को भी साथ लेने की सलाह दे डाली।लेकिन यह सलाह देनी खाडे को बहुत महंगी पड़ी।खड़े के इस पत्र के बाद राजस्व विभाग ने अपने पत्रोत्तर के माध्याम से पुलिस विभाग की कलई खोल दी।BOMBAY LEAKS के हाथ लगे राजस्व विभाग और पुलिस विभाग के इस पत्र में दोनों विभागों की अंदर की लड़ाई किस स्तर पर पहुंच चुकी है इसका अंदाज़ा लगाया जासका है अगर समय रहते इन अधिकारियों का तबादला दूसरे विभाग में नही किया गया तो इसका फायदा सीधे सीधे रेत माफिया उठाऐंगे जो कि ईमानदार अधिकारियों के लिए प्राण घातक साबित होसकता है।
बढ़ती शक की खाई
खाडे को मलाल है कि राजस्व विभाग के अधिकारी अवैध रेत उत्खनन करने वाले वाहनों पर कार्रवाई करते समय पुलिस को जानकारी तक नहीं देते हैं।हालांकि अनेकों बार राजस्व विभाग के कर्मचारियों पर हमले भी हो जाते हैं।उन्होंने शक भी ज़ाहिर किया कि पुलिस विभाग की गैर मौजूदगी में राजस्व विभाग के अधिकारी सही कार्रवाई कर रहे हैं या फिर रेत माफ़ियाओं के साथ उनकी गहरी साठ गांठ और मिली भगत है।
नज़र अंदाज़ करना पड़े न भारी
खाडे यहीं नही रुक रहे उनकी माने तो ऐसा भी ध्यान में आया है कि अवैध रेत वाहन करने वाले ट्रक ट्रैक्टर को रोक कर बिना वजह अपने अधिकार मे रखने का प्रयत्न राजस्व विभाग द्वारा किया जाता है।और जब साठ गाँठ से बात नही बनती तब वाहनों को पुलिस के हवाले किया जाता है।ऐसी घटनाओं से अपराधिक गतिविधियों को दर्ज करने की संख्या कम होती जाती है।उपविभागी पुलिस अधिकारी डॉ. राहुल खाडे ने मर्यादाओं को छलांगते हुए राजस्व विभाग को सलाह रूपी चेतावनी दी कि भविष्य मे पुलिस विभाग की अनुपस्तिथि में राजस्व विभाग द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई में किसी भी कर्मचारी को कोई हानि पहुंचती है तो यह समझा जाएगा कि हमारी बातों को सीधे सीधे नज़र अंदाज़ कर दिया गया है।
राजस्व विभाग को कानून न सिखाऐं
जैसे ही राजस्व विभाग के उपविभागीय दंडअधिकारी को खाडे का यह कड़वा पत्र मिला राजस्व विभाग ने खाडे को उनकी ज़िम्मेदारी और अधिकार क्षेत्र की अच्छी तरह याद दिलाई।उन्होंने कहा कि शायद वह भूल गए हैं कि पुलिस अधिनियम 1951 के कलम 19 के अनुसार उनका पद और अधिकार ज़िला दंडअधिकारी के अधीन है।इसके अलावा अवैध रेत खनन के दौरान राजस्व विभाग के क्या अधिकार और कर्तव्य हैं इसकी रूप रेखा सरकार द्वारा तय्यार की गई है।इसलिए उपविभागय पुलिस अधिकारी के रूप में आपसे दिशा निर्देश की अवश्यकता इस विभाग को नही है।
उपविभागी दंडअधिकारी के रूप में हमारी ओर से दिए गए आदेश के अनुसार पुलिस बंदोबस्त देना मात्र आपका कर्तव्य है और यही अपेक्षा भी है।मगर आपके द्वारा भेजे गए पत्र से यह सवाल ख़ड़ा होगया है कि प्रशासकीय व्यावस्था को सुचारू रूप से चलाने में आप कितना हमे सहयोग देना पसंद कर रहे हैं।उपविभागी पुलिस अधिकारी के रूप में आपने कार्रवाई के दौरान अवैध वाहनों को राजस्व विभाग के पास रखने का जो आरोप लगाया है वह भी गलत है क्योंकि आपको शायद इस बाद की भी विस्मृति होगई है कि शासन अध्यादेश 12 जून 2015 के अनुसार इससे संबंधित विभाग राजस्व विभाग के पास ही सुरक्षित हैं।
आरोप लगाने से पहले सोचे तो होते
राजस्व विभाग ने खाडे को फिर आड़े हाथ लेते हुए पने पत्र मे लिखा कि उपविभागी पुलिस अधिकारी के रूप में आपने हम पर एक और गंभीर आरोप लगाया है कि जब साठ गांठ से बात नहीं बनती तब अवैध गाड़ियों को पुलिस थाने लाकर उनपर अपराध दर्ज किया जाता है।इसपर आपको बतादूं कि रेत सरकारी मालमत्ता है और सरकारी मालमत्ता का ध्यान रखने की ज़िम्मेदारी महसूल अर्थात राजस्व विभागी की है।बगैर इजाज़त अगर कोई इसे चुरान की कोशिश करता है अथवा नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तो वह चोरी जैसे अपराध की श्रेणी मे आजाता है और इस चोरी को रोकने की ज़िम्मेदारी पुलिस विभाग की है।मगर इस ओर गंभीरता से कभी ध्यान नहीं दिया जाता।और राजस्व विभाग द्वारा कार्रवाई से यह साबित भी होता है।
क्या आप यह मानते हैं
अगर वाकई आप ऐसा सोचते हैं कि ड्युटी के दौरान अगर किसी सरकारी अधिकारी के साथ मार पीट की घटना होनें पर सरकार की बदनामी होती है तो मैं पूछता हूं कि क्या दिनदहाड़े नरेंद्र दोभोलकर की हत्या,देस की राजधानी दिल्ली में विदेशी महिला और हमारी बच्चियों पर होने वाले ब्लात्कार ,यहां तक कि पके स्थानी परिक्षेत्र में यशवंतराव सोनावणे पर हमला की घटनाओं से देश का सिर फख़्र से ऊंचा होता है ? पोपट शिंदे जैसे गुनहगारों की होती लंबी फहरिस्त,हत्या,चोरी,लूट,अवैध शराब बिक्री,देह व्यापार,मटका व्यापार,अवैध प्रवासी व्यापारसुपारी देना,दहेज हत्या,बाल विवाह,अवैध अवषधि व्यवसाय,गांजा,चरस,अफीम और फिरौती जैसी सैकड़ों घटनाओं से महाराष्ट्र का नाम रोशन हुआ ? क्या ऐसा आपका मानना है ?
भूमिका स्पष्ट करने के निर्देष
सर्वोच्च न्यायलय के आदेश पर जब रेत उत्खन को कुछ समय के लिए रोक दिया गया था,तब रेत की नीलामी और रेत जमां करने पर भी पाबंदी लगाई गई थी।उस दौरान रेत झोने वाले ने पूर्ण रूप से चोरी की थी।फिर भी पुलिस विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई।तो क्या साठ गांठ कर उन्हें छोड़ दिया गया ? बहरहाल भूमिका स्पष्ट करने के निर्देश उपविभागी पुलिस अधिकारी को दिए गए हैं।
दंड अधिकारी के अधिकार बताने पड़ेंगे
आप इन सारी बातों के पक्षधर हैं तो इसे स्पष्ट करें।एक कार्यकारी दंडअधिकारी की क्या ज़िम्मेदारी होती है ? अगर वह आवगत नहीं है तो आपको इसका स्मरण करवाना चाहूंगाकि ज़िले में कानून व्यावस्थआ बने रखने के लिए किसे कब और कौनसे आदेस देने हैं और उस आदेश को अमल मे कैसे लाना है यह ज़िम्मेदारी कार्यकारी दंड अधिकारी की होती है।जिस प्राकार महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम 1951 के तहेत आपको ज़िम्मेदारी सौंपी गई है उसका पालन करना आपसे अपेक्षित है।
खाड़े की खिचाई
राजस्व विभाग के उपविभाग दंडअधिकारी ने खाड़े की खिचाई करते हुए कहा कि जब भी कहीं कोई घटना घटती है तो उसकी जानकारी हासिल करना,गवाह ढूंढना,पंचनामा करना सुबूतों को इकट्ठा करना और उसी कम अवधि मे असल गुनहगारो को ढूंढकर उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की ज़िम्मेदारी आपकी है।मगर अपराधिक घटनाओं मे पके विभाग द्वारा होने वाली जांच कभी संतोषजनक नहीं रहती।सलमान खान प्रकरण,गोपीनाथ मुंडे अपघात प्रकरण,सुनंदा पुष्कर प्रकरण,नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड जैसे अनोकों मामले मे आपको विभाग द्वारा दाखिल कर कितनो को सज़ा दिलाई गई यह बात महाराष्ट्र तो क्या देश की जंता को भली भांति पता है।
इस लड़ाई से एक बात तो साफ़ ज़ाहिर होती है कि जिस तरह से राजस्व विभाग और पुलिस विभाग एक दूसरे को कमतर समझते हुए एक दूसरे को कानून सिखा रहे हैं उससे ज़्य़ादा इन दोनों विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों को इन मामलों पर और इन अधिकारियों द्वारा चल रही इस काग़ज़ी जंग पर विचार करना चाहिए नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब दफ्तर की यह काग़ज़ी लड़ाई दफ्तर से निकल कर सड़कों पर आजाएगी।जो रेत माफियाओं के लिए किसी तमाशे से कम नही होगी।इन हरकतों को वजह इन अधिकारियों की समझ कितनी है इसका अंदाज़ा लागते हूए इन्हें ऐसी जगह तबादला कर भेजना चाहिए जहाँ इन्हें विभागी कार्य और ज़िम्मेदारियों की पूरी जानकारी और समझ हो जाये।ताकि यह विभाग के लिए नुकसानदेह साबित न हों।
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