शाहिद अंसारी
मुबंई:कलीना लाएब्रेरी मामले में मुंबई ऐंटी करप्शन ब्युरो की कार्रवाई में छगन भुजबल के खिलाफ़ दर्ज FIR के बाद ऐंटी करप्शन ब्युरो ने इस मामले में भुजबल के साथ शामिल मंत्री भी कार्रवाई के दाएरे में हैं जो पायाभूत समिति के सदस्य थे।इन सदस्स्यों में तत्कालीन शिक्षा मंत्री दिलीप वल्से पाटिल भी थे जिनके खिलाफ़ ऐंटी करप्शन ब्युरो ने कार्रवाई का दाएरा सख़्त किया है।ऐंटी करप्शन ब्युरो ने दिलीप वल्से पाटिल से भी पूछताछ की है।भुजबल ऐंड कंपनी ने किस तरह से भ्रष्टाचार किया और कौन कौन से मंत्री इसमे शामिल थे यह जानने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि आखिर ऐंटी करप्शन ब्युरो ने दिलीप वल्से पाटिल से पूछताछ क्यों की।
दरअसल राज्य सराकार की ओर से किसी भी प्रोजेक्ट के प्रस्ताव के लिए विभागी अधिकारियों के फैसले पर ही उसे पास किया जाता है। बड़े प्रोजेक्ट हैं तो उसके लिए राज्य के मुख्यमंत्री की सहमति होती है।लेकिन कुछ ऐसे प्रोजेक्ट जो काफी बड़े होते हैं जिनपर केवल मुख्यमंत्री की सहमति से काम नहीं चलता बल्कि उसके लिए राज्य सरकार की बनाई हुए पायाभूत समिति फैसला करती है।इस कमेटी का गठन मंत्रीमंडल की उप समिति के तहेत किया जाता है इसमें मुख्यमंत्री समेत राज्य के प्रमुख मंत्री सदस्स्य होते हैं जिनकी संख्या 15 से 20 होती है।
कलीना प्रोजेक्ट के मामले में छगन भुजबल इस कमेटी में मौजूद थे कमेटी के दूसरे सदस्स्यों की मौजूदगी मे इसे सबसे पहले सरकारी मियमों के अनुसार डेवलप किया जाना था इसके लिए सरकार ने तकरीबन 60 करोड़ रूपए भी सेंक्शन किए थे ताकि इसे सरकारी नियमानुसार खुद सरकार डेवलप करे।लेकिन भुजबल की मंशा यह थी कि इसे प्राइवेट तरीके से डेवलप किया जाए ताकि जमकर मलाई खाई जाए।इसलिए भुजबल ने इसमें मौजूद सदस्स्यों से सांठ गांठ कर हर एक की मंजूरी लेकर इसे प्राइवेट कंपनी चमनकर ऐंड एसोसिएट को थमा दिया।ताज्जुब इस बात का कि भुजबल ने जिस तरह से ठेका अपने करीबी चमनकर कंपनी को दिया इस कंपनी ने इससे पहले कभी कोई प्रोजेक्ट ही नहीं बनाया और ना ही यह कंपनी उस गाइड लाइंस में फिट बैठती है जो सरकारी काम का ठेका लेकर इतने बड़े करोड़ों रूपए के प्रोजेक्ट को डेवलप करती है।लेकिन भुजबल और कमेटी के सदस्स्यों की मिली भगत की वजह से यह ठेका इसी कंपनी को दिया गया।
जबकि सराकारी ठेके में इसका बाकायदा ई-टेंडर निकाला जाता और फिर छगन भुजबल को इसमें मलाई खाने का मौका नहीं मिलता। इस तरह की सहमति के पीछे की सबसे बड़ी वजह यह होती है कि जिस तरह से भुजबल के ज़रिए चमनकर कंपनी को ठेका दिया गया और इसमें समिति के सदस्स्यों की रज़ामंदी थी।यह खेल पूरी साज़िश के तहेत अंजाम दिया गया था।क्योंकि इसमे भुजबल ने करोड़ों रूपए हज़म किए।इसी तरह से दूसरे प्रोजेक्ट में एक दूसरे की मिली भगत से समिति के दूसरे सदस्स्यों की सहमति हो जाती है और हर प्रोजेक्ट को मनचाहे तरीके से मंत्री प्राइवेट ठेकेदारों को देकर जमकर मलाई खाते हैं।
इन सदस्स्यों की फहरिस्त मे छगन भुजबल के बाद दिलीप वल्से पाटिल का भी नाम शामिल है जिनसे ऐंटी करप्शन ब्युरो ने पूछताछ की है।इससे साफ़ जाहिर होता है कि छगन भुजबल मामले मे जो चार्जशीट दाखिल होगी उसमें भुजबल ऐंड कंपनी के साथ साथ दिलीप वल्से पाटिल समेत पायाभूत समिति के और भी दूसरे मंत्रियों के नाम आरोपियों की फहरिस्त में होंगे।हालांकि दिलीप वल्से पाटिल ने BOMBAY LEAKS से बातचीत मे कहा कि ऐंटी करप्शन ब्युरो ने उनसे जो भी पूछताछ की है उन्होंने वह सारी जानकारी ऐंटी करप्शन ब्युरो को दी है उन्होंने विभाग के मंत्री होने के नाते कलीना प्रोजेक्ट को चमनकर कंपनी के लिए दस्तखत किया है।
जबकि इस बारे में ऐंटी करप्शन ब्युरो के एडिश्नल डीजी संजय बर्वे ने कहा कि चूंकि मामले की तहक़ीक़ात जारी है और जल्द ही चार्जशीट में उन सब के नाम होंगे जिन्होंने कलीना लाएब्रेरी प्रोजेक्ट में दस्तखत कर भुजबल के फैसलों पर सहमती है।क्योंकि यह प्रोजेक्ट मात्र छगन भुजबल की सहमति के बाद चमनकर कंपनी को नहीं दिया गया बल्कि पायाभूत समिति के सदस्स्यों की रज़ा मंदी के बाद दिया गया।इसलिए वह सब कार्रवाई के दाएरे में शामिल हैं।
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