मुंबई :उर्दू अवाम और मुसलमानों की तर्जुमानी की आड़ से अपनी तिजोरी भरने की बतोलेबाज़ी करने वाले दो उर्दू अख़बारों के कर्मचारी जिनमें उर्दू पत्रकार शामिल हैं उनका वेतन न देने की वजह से कर्मचारी बड़ी संकट में हैं कई कर्मचारियों ने तो अब वेतन की उम्मीद भी छोड़ दी है हालांकि कुछ अपने मालिकों के साथ वफादारी का सुबूत देते हुए शांत हैं लेकिन वफादारी का फल उन्हें बीते कई महीनों से नहीं मिल रहा है।
इनमें जुमा जुमा आठ दिन का पैदा हुए उर्दू मुखपत्र मुंबई उर्दू न्युज़ है जिसके मालिक चतुर भतीजा इम्तियाज़ और खालिद हैं जबकि दूसरे अखबार का नाम उर्दू टाइम्स पास है जिसकी मालकिन कमरुन्निसा सईद उर्फ़ चच्ची चौथी पास हैं इन दोनों अखबारों के कर्मचारियों का वेतन बीते 4 महीने नहीं मिला जिसको लेकर इनके कर्मचारी अपने अपने मालिकों को कोस रहे हैं।
कुछ साल पहले इसी परिवार में फूट के बाद पैदा होने वाला अखबार मुंबई उर्दू न्युज़ जिसने बड़ी बतोलेबाज़ी करते हुए उर्दू अवाम के लिए बहुत बड़ा तीर मारने का दावा किया था वह खुद अब अपने पत्रकारों को छोड़िए उनके एडीटर शकील रशीद को कई महीनों से वेतन से वंचित कर रखे लेकिन हैरानी की बात यह है कि उर्दू के यह बुज़र्ग सहाफी जिनकी कलम किसी तौप की फाएरिंग से कम नहीं उनका हाल यह है कि अपने मालिकों से सैलरी की मांग करने में मिसफाएरिंग तक नही करते वेतन मांगने के नाम पर उनके पसीने छुटते हैं अब जब उनका यह हाल है तो बाकी बेचारे मांगने के बजाए गालियां दे कर भड़ास निकालने में ही अपनी भलाई समझते हैं।मुंबई उर्दू न्युज़ वही अखबार है जिसके मालिक इस बात का दावा करते हैं कि उनकी टच बहुत ऊपर तक है और और उनके अखबार में खबर छापने से मुंबई में भौचाल आजाता है क्योंकि उनके सर पर अंडरवर्ल्ड और बाबा बंगाली का हाथ है।
हालांकि उनकी टच को लेकर उर्दू गलियारों में यह कहा जाता है कि वह आईपीएस अफसरों को बिरयानी खिलाते हैं जिसकी वजह से उनकी टच कई आईपीएस अफसरों तक है हालांकि पिछले साल बाम्बेलीक्स ने इस बात की तहकीकात की थी और कई आईपीएस अफसरों से इस बात की जानकारी मांगने की कोशिश की तो कई तो इन्हें पहचानने से इंकार कर दिए कई ने कहा कि उन्हें उर्दू आती ही नहीं तो उर्दू अखबार कहां से पढ़ेंगे जबि बिरयानी वाली बात पर आईपीएस अफसरों ने यह कह कर कन्नी काट ली की वह शुद्ध शाकाहारी हैं तो बिरयानी कहां से खाऐंगे।चूंकि अखबार चलाने वाले दोनों भतीजों को उर्दू नहीं आती बावजूद इसके झोलझाल और पेड न्युज़ के दम पर अखबार पैदा कर लिए लेकिन अब इनकी हालत पतली होते नज़र आ रही है।
वहीं दूसरी तरफ़ उर्दू टाइम पास जिसका दीवालिया निकलने के बाद डंकन रोड आफिस पर कोर्ट का ताला लगने के बाद उन्होंने मजगांव का रुख किया चूंकि सब को पता है कि यह लोग किराये पर जगह लेकर खाली नहीं करते इसलिए इन्हें अब कोई जगह भी नहीं देता इसलिए मजगांव में जगह लेनी पड़ी वह भी कबरस्तान के करीब उनका दीवालिया हले ही निकल चुका था लेकिन उनके कर्मचारियों को चच्ची चौथी पास ने आश्वासन दिया था कि वह सब ठीक कर देंगी क्योंकि बरसों से अपने घर में कैद रहने वाली चच्ची चौथी पास इन दिनों मैदान में उतर चुकी हैं लेकिन सब कुछ ठीक करने वाली बात भी चच्ची चौथी पास की बतोलीबाज़ी निकली हालांकि चच्ची एडवर्टाइज्मेंट की भीक मांगने की दर दर की ठोकरें खाते नज़र आरही हैं लेकिन कोई 500 की भी ऐड नहीं दे रहा है क्योंकि लोगों को ऐसा लगता है कि एडवर्टाइज्मेंट अगर देना ही है तो कोई ढंग के हिंदी अखबारों को दें हालांकि चच्ची ने मुनीर खान से एडवर्टाइज्मेंट के लिए गिड़गिड़ा रही थीं लेकिन वहां भी कुछ हाथ नहीं लगा।
अब दोनों अखबारों का लक्ष है कि इस आने वाले विधान सभा चुनाव में वह उम्मीदवारों से पेड न्युज़ इकट्ठा करेंगे उसके बाद ही उनके कर्मचारियों और पत्रकारों का वेतन वह देंगे अब ऐसे में बेचारे कर्मचारी जाऐं तो कहां जाऐं।
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