मुंबई : हाल ही में मुंबई पुलिस कमिश्नर संजय वर्वे को कर एक अंग्रेज़ी अखबार में छपी सुपारी ख़बर के बाद अब महकमा पुलिस में इतेंकाम की ज्वाला और आईपीएस लाबी के उस घिनावने चेहरे को बेनकाब कर दिया जिससे बीते कुछ सालों से मुंबई पुलिस और जनता दोनों जागरुक नहीं थे।
लेकिन इस सुपारी ख़बर ने महकमा पुलिस में मौजूद मोटी चमड़ी और और उस आईपीएस खेमें का समर्थन करने वालों को फिर एक बार बेनकाब किया है उसी गुटबाज़ी को लेकर एक रिटाएर्ड अफसर ने राज्य सरकार से कार्रवाई की मांग की है कि वह महमका पुलिस में मौजूद काली भेड़ों के खिलाफ़ कार्रवाई करें उनमें राज्य के डीजी से लेकर दूसरे मोटी चमड़ी वाले आईपीएस अधिकारियों के नाम दिए गए हैं
दरअसल संजय बर्वे की नियुक्ति के बाद एक ऐसे मोटी चमड़ी वाले आईपीएस अफसर जो बीते काई सालों से मुंबई पुलिस को अपनी विरासत समझ कर उसे अपने हिसाब से चला रहे थे और वही सपना वह तब भी देखने की कोशिश की जब बर्वे की नियुक्ति मुबंई पुलिस कमिश्नर के पद पर हुई लेकिन बर्वे ने एक न चलने दी।
बर्वे का इस पद पर कार्यरत होना उस आईपीएस के लिए सब से ज्यादा असहनीय था इस आईपीएस खेमें में ऐसे आईपीएस अफसर शामिल हैं जिन्होंने अपने अपने कार्यकाल में पुलिस महकमे के वजूद को दांव पर लगा दिया अपनी मनमानी और पुलिसिया पॉलिटिक्स के चक्कर में विभाग में जम कर सेंधमारी की कई आईपीएस अफसर रिटाएर हो चुके हैं जो अब मुंबई के बिल्डरों की सिपहसालारी कर रहे हैं।
रिटाएर होने के बाद भी आज भी पुलिस महकमा में उनका वर्चस्व है और वह महकमा में ऐसे लोगों का समर्थन करते हैं जो मराठी बनाम उत्तर भारती आईपीएस अफसरों के बीच में योद्धा का किरदार अदा करते हैं क्योंकि वह महकमा में फिलहाल कार्यरत हैं और उनका कंट्रोल उनके ही हाथों में ही जो रिटाएर हो चुके हैं इनमें से कई मुंबई के नामचीन बिल्डरों के यहीं नौकरी करते हैं जबकि बाकी डीजी आफिस में किसी न किसी ओहदे पर पर जमें हैं।
खाकी युद्ध आईपीएस अधिकारियों की एक टीम काफी मज़बूत है वह लंबे समय से न केवल महकमा में अपना दबदबा बरकार रखे हुए हैं बल्कि अगर ऊंचे पद पर किसी भी मराठी आईपीएस अफसर की अगर नियुक्ति होती है तो फिर आईपीएस अधिकारियों की यह टोली उसके पीछे पड़ जाती है जिसकी ताज़ा मिसाल बर्वे हैं क्योंकि लंबे समय बाद मुबंई पुलिस कमिश्नर पद पर वह कार्यरत हैं इसी लिए वह आईपीएस लाबी उन्हें शायद देखना नहीं चाहती इसलिए वह हर समय किसी न किसी फिराक में लगे रहते हैं।
उनका सोचना यही है कि महाराष्ट्र और मुंबई पुलिस की बागडोर उसी खाकी गैंग के आईपीएस अफसर के हाथों में होनी चाहिए जो लंबे समय से चली आरही है अगर किसी दूसरे अफसर को उस पद का कार्यभार राज्य सरकार सौंपती है तो यह खाकी युद्ध और पुलिसिया पालिटिक्स शुरु कर देते हैं और इसी पॉलिटिक्स का शिकार संजय वर्वे भी हुए हालांकि बर्वे के जिस घर को लेकिर सुपारी ली गई है वह सारी खरीदने और बेचने की प्रक्रिया आन रिकार्ड है और हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी प्रापर्टी अपने मर्जी से जितने में चाहे बेच सकता है।
बर्वे के मुंबई पुलिस कमिश्नर के पद पर कार्यरत होने के बाद उन्होंने उस पुलिसिया परंपरा को बदल दिया जिसकी बुनियाद उस लाबी के आईपीएस आकाओं ने की थी बस यह बात उन्हें नागवार गुज़री और फिर सुपारी ख़बर के रुप में इस गैंग ने उसे सच साबित कर दिया यही नहीं कई और मीडिया संस्थाओँ में भी इस सुपारी ख़बर को प्रकाशित कराने की सुपारी दी गई लेकिन यह लाबी इसमें कामयाब नहीं हो सकी।
इस सुपारी ख़बर के बाद गुटबाज़ गैंग और उसके आईपीएस आक़ा इस कोशिश में हैं कि मौजूदा पुलिस कमिश्नर संजय बर्वे के किसी करीबी को उनमें रिश्तेदार से लेकर उनके सोर्स और दोस्तों की भी संख्या है जिनके खिलाफ़ किसी भी प्रकार का झूटा मामला दर्ज करा दिया जाए ताकि उसके आधार पर गुटबाज़ गैंग बर्वे के चरित्र चित्ररण की व्याख्या राज्य के मुख्यमंत्री के सामने कर सके और इस आधार पर बर्वे की छवी को दागदार किया जा सके जानकारी में यह बात भी सामने आई है कि उस लाबी से जुड़े उन अफसरों की जो या तो विभाग में है या तो रिटाएर हो चुके हैं उनकी कुंडली खंगालने का काम शुरु हो चुका है ताकि ईट का जवाब पत्थर से दिया जाए।
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