शाहिद अंसारी
गौतंकवादियों ने गाय की रक्षा के नाम पर नूंह के अकबर खान उर्फ रकबर की पीट-पीटकर हत्या कर दी मामले में राजस्थान पुलिस ने तीसरे आरोपी नरेश को भी गिरफ्तार कर लिया है। इससे पहले धर्मेंद्र यादव और परमजीत को गिरफ्तार किया गया था और तीनों को अदालत में पेश किया। राजस्थान पुलिस ने फिरोजपुर झिरका आकर अकबर के साथी असलम के बयान भी दर्ज किया और उसकी विडियोग्राफी भी कराई गई।
वरादता देश के ले की नई नहीं है वारदात के के विरोध में शनिवार देर रात मेवात के लोग दोहा चौक पर पहुंच गए और गुड़गांव-अलवर मार्ग जाम कर दिया। पूर्व मंत्री आफताब अहमद, पूर्व उपाध्यक्ष आजाद मोहम्मद, इनैलो विधायक नसीम अहमद के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों ने अकबर के हत्या आरोपियों की गिरफ्तारी और आर्थिक सहायता की मांग की। देर रात करीब दो घंटे तक हजारों लोग सड़क पर बैठे रहे। इस दौरान अकबर को सुपुर्द-ए-खाक करने से मना कर दिया गया लेकिन बाद में एसडीएम के आश्वासन पर लोगों ने रास्ता खोला। हरियाणा वक्फ बोर्ड के चेयरमैन एवं पुन्हाना के विधायक रहीशा खान ने कहा कि रकबर के परिवार को तीन लाख रुपये की मदद दी जाएगी। उधर, जमीयत उलमा-ए-हिंद ने एक लाख की मदद के अलावा अकबर के बच्चों की शिक्षा का खर्चा उठाने की घोषणा की है। यह मामले अपनी जगह हैं लेकिन सलाव आज भी बरकरार है कि देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता मे ने के बाद आखिर गौतंकवादियों द्वारा यह आतंक थमे गा कब जबकि उन्होंने खुद अपने बयान में उनकी करतूतों की वयाख्या की थी जिसके बाद गौतंकवादियों के कुछ समूहों मे मोदी के खिलाफ़ विरोध के स्वर गूंजे थे। वारदात मे पुलिस की ओर से मामले की गंभीरता को लेकर सवाल उठे कि पुलिस के लिए इंसान और जानवर में की फर्क है या नहीं ? पुलिस के लिए किसी आरोपी या पीड़ित की मदद करना उसे मेडिकल उपचार के लिए ले जाना इन बातों को लेकर पुलिस कितनी गंभीर थी इस मामले में साफ़ देखा गया क्योंकि वरादात के करीब तीन घंटे 45 मिनट तक मृत्तक पुलिस वालों के साथ रहे इस दौरान पुलिस वाले रास्ते में चाय पीने रुके। इसके बाद जब वह अकबर को अस्पताल ले गए तो उनकी मौत हो चुकी है हालांकि पुलिस स्टेशन से अस्पताल की मामूली दूरी है। बावजूद इसके पुलिस ने घंटों मेडिकल उपचार देने के बजाए समय गवांते रहे इसलिए सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर पुलिस के लिए क्या महत्व रखता है जिंदगी और मौत से जूझ रहा पीड़ित या उनकी कानूनी प्रक्रिया ?
31 वर्षी अकबर खान की गौतंकवादी ने कथित रूप से पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। इस मामले में प्रत्यक्षदर्शी असलम का कहना है कि हम और अकबर अपनी दो गायों को लेकर जा रहे थे, तभी तेज बाइक देखकर दोनों गाय खेतों में चली गईं, जहां 6-7 लोग मौजूद थे। प्रत्यक्षदर्शी असलम ने बताया, ‘खेत में मौजूद लोग गाय देखकर हम पर भड़क गए। मैं अपनी जान बचाने के लिए मौके से भाग निकला। बाद में मुझे पता चला कि मेरे दोस्त की हत्या कर दी गई।’
इस वारदात क बाद राजनीतिक गलियारों में बयान बाज़ी और अपनी अपनी रोटियां सेकने का का मौका मिल गया ऐसा लगता है कि राजनीतिक हस्तियां इस तरह के मुद्दे को लेकर ही मौजूदा सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। इससे पहले की हुई वारदाते ब तक किसी सी छुपी नही बल्कि देश विदेश में गौतंकवादियों के चर्चे हैं। पहलू खान हत्या कांड में भी पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे कोर्ट अपने फैसले सुनाती है लेकिन सुबूत और जांच तो पुलिस के ही हाथों में होती है।
राजस्थान के अलवर में ही गोरक्षा के नाम पर पीट-पीट कर मार दिए गए व्यापारी पहलू खान हत्याकांड के सभी 6 आरोपियों को क्लीनचिट दे दी गई थी। जांच में सीआईडी ने सभी को बरी कर दिया है गौर करने वाली बात यह है कि पहलू खान ने इन सभी का नाम मरने से पहले पुलिस के सामने लिया था। सीआईडी के मुताबिक घटना के वक्त सभी आरोपी जगमाल यादव की राठ गोशाला में थे जो घटनास्थल से चार किलोमीटर दूर है। इन सभी के कॉल रिकॉर्ड और मोबाइल की लोकेशन से भी इन बयानों की पुष्टि की गई है जांच अधिकारी ने इन निष्कर्षों के आधार पर सभी आरोपियों को आरोपमुक्त किया था। पुलिस ने आरोपियों को मुबाइल लोकेशन के आधार पर उन्हें निर्दोष बताया है तो ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि क्या पहलू खान की हत्या करने वाले लोग हत्या से पहले मुबाइल को एक जगह रख कर इस वारदात को अंजाम देने के लिए पहुंचे थे ? क्या किसी के मुबाइल लोकेशन के आधार पर हत्या के आरोपियों को बरी किया जा सकता है ? ऐसे कई सवाल हैं जिसके जवाब अब तक जांच करने वाली टीम के पास नहीं है लेकिन सब से अहम सवाल जब यह नहीं थे तो आखिर वह लोग हैं कौन हैं जो वीडियो में कैद हुए ? और उन्हें फिर पुलिस आज तक पकड़ने में असमर्थ क्यों है ?
वहीं सीआईडी की ओर से किए गए इस फैसले पर पहलू खान के बेटे इरशाद खान ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि ‘मैं उस वक़्त अपने अब्बा (पहलू खान) के साथ था आरोपी एक दूसरे का नाम लेकर बुला रहे थे जिस वजह से अब्बा ने बयान में इनका नाम लिए। 6 नाम हमें भी साफ़ तौर पर याद हैं इन्हीं 6 लोगों ने ही हमें रोका था और मारपीट की शुरूआत भी इन्होंने ही की थी। हम इन्हें काग़ज दिखा रहे थे पर इन्होंने काग़ज़ फाड़ दिया और पीटने लगे ‘। इरशाद खान ने दावा किया ‘मरने से पहले ये बयान हमारे अब्बा ने दिया था जिसको ये ग़लत साबित करनें में लगे हुए हैं पुलिस इनको बचाने में लगी हुई है ये लोग बजरंग दल और आरएसएस के लोग हैं हम हार नहीं मानेंगे हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे मरते दम तक लड़ते रहेंगे 6 महीने में इन 6 लोगों की ग़िरफ़्तारी भी नहीं की और इन्हें बरी कर दिया मेरे सामने मेरे अब्बा को जान से मार दिया जाना मेरा जीना ही बेकार है ।
1 अप्रेल साल 2017 को 55 वर्ष के पहलू खान गुस्साई भीड़ का शिकार हुए और जान से हाथ धो बैठे इसके बाद के 118 दिनों में गाय से संबंधित हिंसा की 26 घटनाएं हुईं हैं। पिछले आठ वर्षों से अब तक गाय से संबंधित हिंसा के लगभग 70 मामले हुए हैं। मई 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद से इस तरह की 97 फीसदी ( 70 में से 68 ) घटनाएं दर्ज की गई हैं। मोदी राज में इस तरह की वारदातों में जो इजाफा हुआ है उतना किसी और के राज में किसी भी राज्य में इस तरह की वारदातें सामने नहीं आई।
गाय को लेकर हत्याओं का आकड़ा साल 2017 में अब तक जो सामने आया है वह बेहद चिंताजनक है हालांकि यह आकड़े हकीकत से कोसों दूर हैं क्योंकि सोशल साइट और जनता जागरुकता के कारण यह मामले कहीं भी घटते हैं तो वह देश के कोने कोने में फैल जाते हैं। हालांकि यह चिंता का विषय है कि गाय को लेकर जो घटनाऐं घट रही हैं उनमें छोटे छोटे कस्बे, गांव कोई भी तथाकथित गऊरक्षकों के कहेर से नहीं बचे।
पिछले आठ वर्षों यानी वर्ष 2010 से वर्ष 2017 तक पशु से जुड़े मुद्दों पर होने वाली 51 फीसदी हिंसा में निशाने पर मुसलमान रहे हैं। इन्हीं मुद्दों पर 63 घटनाओं में मारे गए 28 भारतीयों में से 86 फीसदी मुसलमान हैं। इनमें से कम से कम 97 फीसदी हमले, नरेंद्र मोदी के मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने और देश की सत्ता संभालने के बाद हुए। यहां यह भी बता दें कि गाय से संबंधित आधे मामले, यानी 63 में से 32 मामले, भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित राज्यों में घटे हैं। 25 जून 2017 तक दर्ज हिंसा के मामले सामने आए हैं। पिछले सात वर्षों के दौरान मारे गए 28 भारतीयों में 24 मुसलमान थे यानी इस संबंध में मारे जाने वाले 86 फीसदी मुसलमान हैं। इस तरह से हमलों में कम से कम 124 लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी में पता चलता है कि इनमें से आधे से ज्यादा हमले ( करीब 52 फीसदी ) अफवाहों पर आधारित थे।
गाय को लेकर हिंसा के मामले मे साल 2017 सब से घटिया रहा है वर्ष 2017 के पहले छह महीनों में गाय संबंधित हिंसा के 20 मामले सामने आए हैं। वर्ष 2016 के आंकड़ों की तुलना में यह 75 फीसदी ज्यादा है। वर्ष 2010 के बाद से गाय से संबंधित हिंसा के मामले में अब तक 2016 की हालत सबसे खराब मानी जा रही थी लेकिन वर्ष 2017 पिछले वर्ष की तुलना में बदतर है। हिंसा के इन मामलों में भीड़ का दंड, हत्या और हत्या की कोशिश, उत्पीड़न, और सामूहिक बलात्कार शामिल हैं। दो हमलों में पीड़ितों को जंजीर से बांधा गया, उनके कपड़े उतारे गए और उन्हें बुरी तरह पीटा गया जबकि दो अन्य हमलों में पीड़ितों की जान ले ली गई थी।
भारत के 29 राज्यों में से 19 राज्यों से इस तरह के हमलों की सूचना मिली है। इन हमलों को कभी-कभी सामूहिक रूप से ‘गौतंकवाद’ के रूप में देखा जाता है, जो सोशल मीडिया पर गाय और आतंकवाद के लिए नया हिंदी का शब्द है। उत्तर प्रदेश में गाय संबंधित हिंसा के 10, हरियाणा में 9, गुजरात में 6, कर्नाटक में 6, मध्य प्रदेश में 4, दिल्ली में 4 और राजस्थान में 4 मामले दर्ज हुए हैं।दक्षिण और पूर्वी राज्यों (बंगाल और ओडिशा समेत) से 21 फीसदी (63 में से 13) से अधिक मामलों की सूचना नहीं मिली है लेकिन लगभग आधे (13 में से 6) कर्नाटक में हुए हैं। उत्तर-पूर्व में एकमात्र घटना हुई है जिसमें 30 अप्रैल 2017 को असम में दो लोगों की हत्या कर दी गई थी।
वर्ष 2017 के 33 वें सप्ताह में भारत में गाय संबंधित हिंसा की 30वीं घटना दर्ज की गई है। यह घटना बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में हुई, जहां गाय निगरानी समिति के सदस्यों ने कथित तौर पर गाय का मांस खाने के आरोप में सात मुसलमानों पर हमला किया। 2017 में, गाय संबंधित हिंसा की घटना पिछले आठ वर्षों में सबसे ज्यादा रही है आकड़े से पता चलता है कि वर्ष 2010 के बाद से अब तक भारत में गाय संबंधित हिंसा की 75 घटनाएं दर्ज की हैं।
17 अगस्त 2017 को दुमरा गांव में मोहम्मद शहाबुद्दीन के घर के बाहर 50 से अधिक लोग इकट्ठे हुए और भीड़ ‘भारत माता की जय’ का नारा लगा रही थी । 30 जुलाई 2017 तक दर्ज हिंसा के मामलों में जो जानकारी हाथ लगी है उससे पता चलता है कि आधे से ज्यादा या 54 फीसदी ( 70 मामलों में से 38 ) गाय से संबंधित हिंसा के मामले भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित राज्यों में से थे। आंकड़े बताते हैं कि करीब आठ वर्षों में यानी साल 2010 से 2017 के दौरान गायों के मामलों में हिंसा के 51 फीसदी मामलों (70 में से 36) में निशाने पर मुसलमान रहे। यही नहीं इसके साथ ही 70 घटनाओं में मारे जाने वालों में से 86 फीसदी ( 28 में से 24 ) मुसलमान थे।इन हमलों में कम से कम 136 लोग घायल हुए हैं आधे से ज्यादा करीब 54 फीसदी अफवाहों की वजह से घटनाऐं घटी ।
आठ वर्षों के दौरान 70 हमलों में 68 मोदी की सरकार सत्ता में आने के बाद (2014-2017) के बाद हुए हैं। प्रतिशत में देखें तो लगभग 97 फीसदी जबकि वर्ष 2016 में गाय से संबंधित हिंसा की घटनाओं की संख्या 26 रही। यह संख्या वर्ष 2017 के पहले सात महीनों की संख्या के बराबर है। दर्ज किए मामलों में करीब आधा यानी 49 फीसदी (34 हमलों) में पुलिस ने पीड़ितों / जिंदा बचे लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। पुलिस की यह कार्रवाई गाय के नाम पर हिंसा के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी के उस समय दिए गए बयान के खिलाफ जाता है।
29 जून 2017 को गुजरात के साबरमती आश्रम के शताब्दी समारोह में मोदी ने कहा: “ गौ भक्ति के नाम पर लोगों को मारना अस्वीकार्य है यह कुछ ऐसा है जो महात्मा गांधी स्वीकार नहीं करेंगे कोई भी व्यक्ति को अपने हाथों में कानून लेने का अधिकार नहीं है हम अहिंसा के देश में हैंहिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है गायों की सुरक्षा के संबंध में किसी ने भी महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे से ज्यादा नहीं बताया है हमें वैसा ही करना चाहिए।” अपने भाषण के अंत में प्रधानमंत्री ने कहा था “ हम सब एक साथ काम करते हैं आइए… एक ऐसा भारत बनाते हैं जिस पर हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को गर्व हो।”
पिछले तीन वर्षों में विभिन्न समुदायों के बीच झगड़े को बढ़ावा देने के अपराध में 41 फीसदी वृद्धि हुई है वर्ष 2014 से 2016 के बीच भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान आदि) और 153 बी (अभिप्राय, राष्ट्रीय एकता के प्रति झुकाव का दावा) के तहत विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने के कम से कम 1,235 मामले दर्ज हुए हैं। 25 जुलाई, 2017 को ‘लिन्चिंग’ पर लोकसभा को दिए एक एक सवाल के जवाब में भी यह जानकारी सामने आई है।
“राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए और 153 बी के तहत धर्म, जाति, जन्म स्थान आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच आपसी सौहार्द को खत्म कर देने वाले अपराधों पर डेटा रखता है।हालांकि यह गाय पर सतर्कता गाय व्यापार और तस्करी से संबंधित मामलों पर डेटा नहीं रखता है ,” गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने लोकसभा में दिए एक जवाब में ऐसा कहा है कि पिछले तीन वर्षों से 2016 तक, ‘विभिन्न समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के अपराध’ में 41 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह आंकड़े 336 से बढ़कर 475 हुए हैं।भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 346 फीसदी की वृद्धि दर्ज करते हुए सबसे अधिक (202) मामलों की सूचना है। यह आंकड़े वर्ष 2014 में 26 थे जबकि वर्ष 2016 में बढ़कर 116 हुए।तीन सालों में उत्तर प्रदेश के बाद केरल (151) कर्नाटक (114) तेलंगाना (104) और महाराष्ट्र (103) का स्थान रहा है।देश भर में उत्तराखंड में भी मामलों के दर में तेजी से वृद्धि हुई है।उत्तराखंड में यह वृद्धि दर 450 फीसदी है। आंकड़े वर्ष 2014 में चार थे जबकि कि वर्ष 2016 में बढ़ कर 22 हुए हैं।
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COPIED FROM SALEEM BAIG POST
दंगो के मुकाबले लींचिंग एक ज़्यादा सफ़ल प्रयोग साबित हो रहा है जो कम नुक़सान मे ज़्यादा वोट दिलायेगा,
1- दंगो मे बाज़ार बंद होने या कर्फ़यू की वजह से उनके वोटर के कारोबार का नुक़सान होता है जबकि लींचिंग मे ऐसा कुछ नुक़सान नही
2- दंगो मे अतिरिक्त फ़ोर्स लगानी पड़ती है जिस पर सरकार का भी पैसा ख़र्च होता है जबकि लींचिंग मे ऐसा कुछ नही
3- दंगे आन रिकार्ड शासन प्रशासन की विफ़लता मानी जाती है जबकि लींचिंग को रोडरेज, गौतस्करी , बच्चा चोरी जैसे अपराधों मे परिवर्तित करके सामान्य अपराध दिखाया जाता है
4- दंगो को मीडिया कवरेज ज़्यादा मिलता है जिसकी वजह से बात विदेशों तक पहुंच जाती है और ज़्यादा बदनामी होती है लींचिंग फिर भी इतना कवरेज नही ले पाती
5- दंगो मे आम माहौल झगड़े का होता है जिसमे दूसरा पक्ष भी नुक़सान पहुंचा सकता है जबकि लींचिंग मे एक दो लोगों को सैंकड़ों लोग घेरकर मारते हैं जिसमे दूसरा पक्ष कोई नुक़सान पहुंचा ही नही सकता
6- दंगे मे भले ही एक पक्ष का नुक़सान ज़्यादा हो फिर भी दंगा बराबरी का शब्द है जिससे कमज़ोर पक्ष पर अत्याचार ज़्यादा महसूस नही होता जबकि लिंचिंग मे अत्याचार होता दिखता है वही चीज़ साम्प्रदायिक बहुसंख्यको को ज़्यादा ख़ुश करती है, इसी उम्मीद पर वोट दिया था इसी से ख़ुश होकर फिर देंगे
Saleem Beig