अब्बास नकवी
मुंबई : असेम्बली सीटों को देखते हुए उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र दूसरा सबसे बड़ा राज्य है । वजह यही है कि महाराष्ट्र लोकसभा की 48 सीटों के साथ विधानसभा की 288 सीट दिल्ली हिलाने की क्षमता रखती है। चुनाव का एलान हो चुका है।आगामी 21 अक्टूबर को महाराष्ट्र और हरियाणा के मतदाता किस्मत के बैलट पर अपनी मोहर लगाएँगे। महाराष्ट्र में काफी खींचातान के बाद केंद्र और राज्य में सरकार की सहयोगी रही शिवसेना और बीजेपी के बीच सीट बंटवारे का गडित भी हल हो चुका है।
सूत्रों के मुताबिक सेना बीजेपी सीट डील फॉर्म्युले में बीजेपी 144, शिवसेना 126 और अन्य सहयोगी 18 सीटों पर चुनाव लड़ सकती हैं।खबर है कि बीजेपी कुछ नए चेहरों को जहां टिकेट देने पर विचार कर रही है, तो सेना भी पाला बदल कर आये दलबदलुओ को खुश करने में लगी है।ऐसी स्थिति में पार्टी के अंदर मौजूदा विधायको के टिकेट कटने की स्थिति में बगावती स्वर को टालने के लिए गठबंधन की घोषणा फिलहाल समय के हिसाब से भी की जा सकती है। तो वही छोटे दलों द्वारा सीट को लेकर हो रही माथा पच्ची भी कही न कही से गठबंधन के एलान में रुकावट का कारण बने है।
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद शिवसेना को यह समझ आ गया है कि गठबंधन को तोड़ने से उसे ही नुक़सान होगा। इसलिए उसके तेवर पिछली बार की तरह तीख़े न होकर इस बार शांत की डोर में पिरोये हुए हैं।
सेना को 2014 के विधान सभा चुनाव नतीजो का भी अहसास हो चुका था कि अकेले हम अकेले तुम की राह पर चलना पार्टी के हित में नही होगा।लेहाज़ा मौजूदा सरकार के आगे दहाड़ मारने वाली शिव सेना का मान जाना कोई आश्चर्य नही है। बीजेपी अपनी सहयोगी शिवसेना के साथ एक बार फिर महाराष्ट्र जीतने के लिए तैयार खड़ी है।
2014 विधानसभा चुनावों में बीजेपी-शिवसेना के बीच सीटों को लेकर हालात तो यहां तक पहुंच चुके थे कि केंद्र से शिवसेना कभी भी समर्थन वापसी की घोषणा कर सकती है। हालांकि नतीजो के बाद दोनों दल एक साथ आ गए थे। 2014 में बीजेपी ने 122 सीटों पर जबकि शिवसेना ने 63 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने बड़े पैमाने पर अन्य पार्टियों के जीते हुए विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल किया है। इसी तरह शिवसेना भी दूसरे दलों के कई विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कराने में सफल हुई है।
हालांकि सेना बीजेपी के पास महाराष्ट्र में ऐसा कोई विकास मॉडल का प्रारूप नही है कि जनता के बीच जाकर हक़ से वोट मांग सके। बावजूद इसके राज्य में फिर से सेना बीजेपी की सरकार बनेगी ।ये दावा ही नही बल्कि मोहर भी लग चुकी है।
बीजेपी को 2014 के विधानसभा चुनावों में 27 फीसदी वोट मिले थे ।ये मोदी आंधी का वो दौर था जब उम्मीदवार कोई भी हो बस बटन सिर्फ कमल का दब रहा था। ऐसे दौर में कांग्रेस को 42 और एनसीपी को 41 सीटों पर जीत मिली थी।आंकड़ो के मुताबिक राज्य में शिवसेना को 19 फीसदी, कांग्रेस को 17 फीसदी और एनसीपी को भी 17 फीसदी मतदाताओ ने वोट किये थे।
ये चुनाव विकास बनाम नरेंद्र मोदी होगा !! पार्टी के पास विकास को लेकर कोई ऐसा मुद्दा नही जिसे मतदाताओ के समक्ष रखा जाए।पार्टी हर चुनाव के तरह महाराष्ट्र का चुनाव भी नरेंद्र मोदी के नाम लड़ेगी। ऐसे में क्या अपनी खोई ज़मीन तलाशने की जुगत में विपक्ष
महाराष्ट्र में रोजगार, खेती और पानी का मुद्दा भुना पाने में कामयाब होगा। मतदाताओ में बीजेपी सेना को लेकर आक्रोश तो है लेकिन क्या ये आक्रोश सरकार की दिशा और दशा तय कर पाने में कामयाब होगा।महाराष्ट्र में पानी 9 पर्सेंट लोगों ने पानी, रोजगार ,सड़क और किसानों की समस्या विपक्ष के पास एक बड़ा हथियार है जिसे लेकर जनता में सरकार से नाराजगी भी है। लेकिन ऐसा संभव नही लगता है कि विपक्ष आम जनता की रोज़ मर्रा से जुड़ी इन समस्याओं को चुनाव में तेज हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकेगा।
क्योंकि राज्य में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस के कई बड़े चेहरे बीजेपी या फिर सेना का दामन थाम चुके है।यही हॉल राज्य कांग्रेस का भी है। इस बार कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुसीबत तो ये है कि वो अपने मौजूदा उत्तर भारतीय वोट बैंक से दूर हो चुकी है।क्योंकि राज्य में उत्तर भारतीय समाज के कई बड़े चेहरे कांग्रेस को अलविदा कह चुके है।मुम्बई कांग्रेस शुरू से दो खेमो में हमेशा बटी नज़र आई।लोकसभा चुनाव में इसका नतीजा पार्टी को भुगतना पड़ा था।
महाराष्ट्र में सेना बीजेपी का गठबंधन हो चुका है ।माना जा रहा है कि अगर सेना बीजेपी अलग अलग पुनः चुनाव लड़ते तो सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता था। माना जा रहा है कि अकेले चुनावी समर में उतरने पर सेना को महज 35 से 42 सीटों पर संतोष करना पड़ता।जबकि बीजेपी 125 के पार निकल जाती।जबकि कांग्रेस को 20 प्लस, एनसीपी को 18 जबकि अन्य को 60 प्लस के पायदान पर दिख रही है। वोट प्रतिशत के मुताबिक बीजेपी को 32 प्रतिशत, शिवसेना को 17 प्रतिशत, कांग्रेस को 16 प्लस प्रतिशत, एनसीपी को 10 प्लस प्रतिशत और अन्य को 22 से 27 प्रतिशत वोट मिलने का का आंकड़ा था।
महाराष्ट्र चुनाव में विजय रथ फिलहाल बीजेपी के पाले में जाता दिख रहा है ।जिसके बाद शरद पवार को खुद इस उम्र में मैदान में उतारना पड़ा है। हालांकि शरद पवार को लेकर कहावत है कि वो ज़मीन से जुड़े हुए नेता है रैलियां और दौरा उनका पेशा है।तो वही दूसरी तरफ कांग्रेस खेमे में अब तक खामोशी है ।
लेहाज़ा अगर इस बार भी महाराष्ट्र की जनता ने नरेंद्र मोदी के नाम पर मोहर ठोकी तो विपक्ष का सूपड़ा साफ होने से कोई नही रोक सकता।
नरेंद्र मोदी के नाम पर पुनः चुनावी दंगल में उतारने वाली बीजेपी मतदान से पहले ही अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। शायद यही वजह है कि दावे के साथ बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ‘मिशन 220 प्लस’ का नारा लेकर चल रहा है । तो वही हाल ही के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करने के बाद बीजेपी-शिवेसना का ‘मिशन 220 प्लस’ का दावा कोई आश्चर्य की बात नही होगी।
Post View : 36959