शाहिद अंसारी
मुंबई: Bombay Leaks की पड़ताल में इस बात का खुलासा हुआ है कि मुंबई पुलिस के लिए सरकारी आवास जो अलार्ट किए गए हैं उनमें 1866 ऐसे लोग हैं जो कि गैर कानूनी तरीके से क़ब्ज़ा जमाए बैठे हैं गैर कानूनी तरीके से रहने के बाद वहां का किराया तक नहीं भरते यह घर 180 स्क्वैर फिट से लेकर 700 स्क्वैर फिट तक के हैं इनमें विधवा,रिटाएर्ड,नौकरी से निकाले जाने वाले पुलिसकर्मी शामिल हैं जो कि पुलिस की श्रेणी में ना आकर आम जनता की श्रेणी में आते हैं।इस तरह से लंबे समय से इन घरों मे क़ब्ज़ा करने वाले लोग पुलिस विभाग में घरों के किराया नहीं देते जिसकी वजह से हर साल मुंबई पुलिस को तकरीबन 100 करोड़ का नुकसान हो रहा है और मुंबई पुलिस इन्हें खाली कराने में असमर्थ होते हुए यह नुकसान बर्दाश्त कर रही है।
मुबंई पुलिस में ताड़देव एल.ए 2 में कार्यरत सिपाही रुपीन पाटिल ने मार्च 2015 में मुंबई में घर के लिए आवेदन किया था लेकिन 2 साल बीत जाने के बाद भी रुपीन को घर नहीं मिला वह अलीबाग से रोज़ाना समुंद्री रास्ते से साढ़े तीन घंटे का सफ़र तय करन के बाद मुंबई के ताड़देव स्थित एल.ए मुख्यलय पहुंचते हैं इस तरह से उनका रोज़ाना सफ़र के दौरान तकरीबन 7 घंटा का समय लगता है।उनकी पत्नी रूपाली पाटिल का गर्भपात होने की वजह से ऑपरेशन हुआ है फिलहाल उनका एलाज अलीबाग के बाजे हॉस्पिटल में चल रहा है जिसकी वजह से वह काफी परेशान हैं। उन्हों मुंबई सीपी को तकरीबन 7 बार से ज़्यादा आवेदन दिया है लेकिन यह आवेदन आम आवेदनों की तरह रद्दी की टोकरी में फेक दिया गया।रुपीन पाटिल की शिकायत है कि 2004 में उन्होंने पुलिस विभाग में नौकरी ज्वाइन की है उन्हें अब तक मुबंई में घर नहीं मिला जबकि 2008 में पुलिस विभाग ज्वाइन करने वालों को मुंबई में घर दिया गया है उनका कहना है कि विभाग में घर उनको मिलता है जिनके वरिष्ठ अधिकारियों से संबंध बेहतर हों और वह उस जौकपॉट के सहारे मुबंई में अपना आशियाना बना पा सकते हैं जबकि मेरे जैसे लोग ठोकरें खाते रहते हैं और घर नहीं मिलता।
छानबीन में इस बात का पता चला है कि मुंबई पुलिस में सिपाही रुपीन पाटिल ही नहीं बल्कि 7000 ऐसे पुलिसकर्मी हैं जो मुंबई में कार्यरत हैं और उनके रहने का इंतेज़ाम मुंबई पुलिस और सरकार करने में असमर्थ है इसलिए मजबूरन नौकरी बचाने के लिए वह लंबी दूरी का सफर तय करते हुए रोजाना अपने कार्यालय पहुंचते हैं।ऐसा नहीं है कि मुबंई पुलिस के पास उन्हें देने के लिए घर नहीं है घर हैं लेकिन उनपर ऐसे लोगों का कबज़ा है जिनके परिवार के लोग कभी कभार कोई न कोई कोई सदस्य पुलिस विभाग में कार्यरत रहा हो जो कि अभी तक मुंबई पुलिस के लिए दिए सरकारी क्वार्टर्स पर गैर कानूनी तरीके से कब्ज़ा जमाये बैठे हैं जिन्हें मुंबई पुलिस खुद खाली कराने में असमर्थ है।
कितने लोग हैं बेघर
Bombay Leaks की पड़ताल में इस बात की खुलासा हुआ है कि मुंबई भर में ऐसे 7000 पुलिसकर्मी हैं जो कि मुंबई में घर पाने के लिए धक्के खा रहे हैं लेकिन उन्हें सरकार या पुलिस विभाग घर देने में असमर्थ है इसलिए वह मुबंई से दूर अपने निवास स्थान से रोज़ाना मुंबई की यात्रा कर अपने कार्यालय पहुंचते हैं।इनमें हर रैंक के पुलिसकर्मी शामिल हैं।
कहां कहां है पुलिस वालों के घर
मुंबई से लेकर दहिसर मुलुंड और मानखुर्द तक मुबंई पुलिस के लिए सरकार द्वारा रहने के घर दिए गए हैं कुलाबा ,अग्रीपाड़ा , नागपाड़ा, ताड़देव, वरली, दादर ,माहिम,बांद्रा,खेरवाड़ी,सांताक्रुज़ कालीना,अंधेरी,मरोल,मुलुंड,कांदीवली,बोरिवली,चेंबुर समेत 100 से ज़्यादा जगहों पर पुलिस वालों को सराकर ने आवास दिए हैं उनमे अधिकतर पुलिस थानो के नज़दीक हैं।
घर खाली करने के नियम
पुलिस विभाग में नौकरी न करने वाले परिवार को सरकार की तरफ से 3 महीने तक मुफ्त घर दिया जाता है उसके बाद भी खाली न किए जाने के बाद उनसे किराया वसूला जाता है लेकिन 9 महीने के अंदर उन्हें किसी भी हाल में सरकारी आवास को खाली करना होगा और जिसके लिए बाकायदा सराकर का जीआर और सीपी मुंबई के आदेश जारी किए गए हैं जिनका सख्ती से पालन करना होता है।लेकिन घर पर क़ब्ज़ा जमाए बैठे लोग उस नियम कानून को ताक पर रखते हैं और घर पर रहते भी हैं वह भी मुफ्त में।
क्या है नियम कानून
2013 में मैट के ज़रिए एक फैसले में कहा गया था ऐसे लोग जिनका पुलिस विभाग से कोई लेना देना नहीं और वह पुलिस विभाग के घर पर क़ब्ज़ा जमाए बैठे हैं उन्हे घर से बाहर निकाला जाए और उनसे घर खाली करवाया जाए मैट ने कहा सरकार ने जो इसके लिए नियम कानून बनाए उसका पालन किया जाए।ठीक ऐसा ही मुबंई हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार ने जो नियम कानून बनाया है उसका पालन किया जाए।क्योंकि राज्य सरकार का जो कानून है उसमें 9 महीने के बाद उस परिवार को जो कि पुलिस की श्रेणी में नहीं फिट बैठता उसे घर खाली कर पुलिस विभाग के हवाले करने के लिए कहा गया है।
क्या कहते हैं मुंबई पुलिस कमिश्नर
इस मामले को देख मुबंई एल.ए में कार्यत पुलिस कांस्टेबल सुनील टोके ने मुंबई पुलिस कमिश्नर से कार्रवाई की मांग की लेकिन हर बार पुलिस कमिश्नर की ओर से जांच का लॉलीपॉप मिलने के बाद टोके ने आखिरी अर्ज़ी देते हुए मांग की है कि जांच नहीं बल्कि कार्रवाई करें।
क्या कहते हैं वरिष्ठ अधिकारी
इस बारे में ज्वाइंट सीपी एडमिन अर्चना त्यागी से जब बात की गई तो न्होंने कहा कि उनके पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है और जब यह जानकारी मिल जाए तो ही इस पर कुछ कहना बेहतर होगा।
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