मुंबई:मुंबई पुलिस ने नेहरू नगर पुलिस थाने में रिश्वत खोरी के मामले में साल 2013 में 36 पुलिस वालों को तत्कालीन राज्य के गृह मंत्री आर आर पाटिल के आदेश के बाद सस्पेंड किया था।एक घर के अवैध निर्माण के दौरान मुंबई के कुर्ला इलाके में नेहरू नगर पुलिस थाने के पुलिस कर्मियों ने जमकर रिश्वत तलब की थी जिसके बाद सीनियर पीआई धनंजय भास्कर बागायतकर समेत 36 पुलिस कर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया था।हालांकि सीनियर पीआई के खिलाफ रिश्वत खोरी को लेकर किसी तरह के कोई सुबूत नहीं थे।सीनियर पीआई को सस्पेंड किए जाने के बाद उन्हों ने MAT में जाकर गुहार लगाई जहां MAT ने 4 महीनों के अंदर ही सीनियर पीआई के ऊपर लगे आरोपों का निपटारा करने कि लिए मुबंई पुलिस को आदेश जारी किया।क्योंकि सीनियर पीआई के ऊपर जो इल्जाम था वह रिश्वत खोरी का नहीं था।उन पर यह आरोप था कि उनका पुलिस वालों पर कंट्रोल नहीं है जिसकी वजह से वह रिश्वत खोरी करते कैमरे में कैद हुए।MAT के 4 महीने दिए जाने के बाद जब मामले का निपटारा नहीं हुआ तो उन्होंने ने कोर्ट से तत्कालीन मुबंई सीपी राकेश मारिया की शिकायत की जिसके बाद कोर्ट के आदेश के बाद उनकी मुबंई पुलिस मे दोबारा इंट्री हुई और यह मामला चलता रहा।
1 जूलाई 2015 को मुबंई पुलिस के ज्वाइंट सीपी ला ऐंड आर्डर देवेन भारती के जरिए पूरे मामले में जो चार्जशीट दाखिल की गई उसमें उनपर रिश्वत खोरी का आरोप नहीं बल्कि उसमें यह कहा गया कि उनका उनके स्टाफ पर निंयत्रण नहीं है जिसकी सजा यह है कि उनके एक साल का इंक्रीमेंट का जो पैसा है वह उनके वेतन से काटा जाएगा।लेकिन वह पैसा तबतक काटा जाएगा जबतक वह रियाएर नही होंगे।
इस आदेश के बाद उनका एसीपी प्रमोशन इस लिए रुक गया कि उनकी सर्विस शीट पर यह लिख दिया गया कि जब तक वह रिटाएर नहीं होंगे तबतक उनके वेतन से एक साल का इंक्रीमेंट की राशि काटी जाएगी और यही वजह है कि उनका एसीपी का प्रमोशन नहीं हुआ।हालांकि इस मामले में मुंबई ऐंटी करप्शन ब्युरो ने FIR दर्ज की लेकिन उस FIR में उनका नाम नहीं है।
लेकिन सबसे चौंका देने वाली बात यह है कि क्या मुंबई पुलिस ने रिटाएर्ड सीनियर पीआई धनंजय भास्कर बागायतकर को अपने पुलिस कर्मियों पर नियंत्रण ना रख पाने की जो सजा सुनाई है उस सजा का कोई प्रावधान महाराष्ट्र पुलिस ऐक्ट में है ही नहीं।जिसको देख उन्होंने इस मामले को फिर MAT में चुनौती देने का फैसला किया है।
राज्य के किसी भी पुलिस अधिकारी को ऐसे फैसले सुनाने का कोई अधिकार नहीं जो मुंबई पुलिस या महाराष्ट्र पुलिस की किसी भी किताब या किसी भी कानून में नहीं है या जिस का कोई आधार ही ना हो।
इससे पहले इस तरह की डिपार्टमेंटल सजा उत्तर प्रदेश पुलिस मे तैनात इस्पेक्टर विजय सिंह के खिलाफ सुनाई गई जिसमें किसी आरोपी को कोर्ट से जमानत मिल गई जिसके बाद विभागी अधिकारियों ने इस बात को आधार बनाया कि 90 दिन के अंदर उस आरोपी की चार्जशीट इस अधिकारी की ओर से कोर्ट में जमां ना होने की वजह से आरोपी को जमानत मिल गई।90 दिन के अंदर मामले की चार्जशीट जमां ना करने की सजा उस अधिकारी को इस रूप मे दी गई की उसे साल में जो इंटिग्रीटी सर्टिफिकेट मिलता है उसे उससे वंचित रखा जाए।हालांकि इस तरह की विभाग की ओर से सजा का प्रावाधान उत्तर प्रदेश पुलिस पुलिस ऐक्ट मे नहीं है जिसके बाद कई जगहों पर इस्पेक्टर विजय सिंह ने इसके खिलाफ आवाज उठाई लेकिन हर जगह नाकामी हाथ लगी आखिर में मामले में सुप्रीम कोर्ट नें दखल दिया और उनके ऊपर विभाग के जरिए की गई कार्रवाई को गलत बताते हुए कहा कि जो सजा पनिश्मेंट रूल के तहेत है ही नहीं या जिसका कोई जिक्र और आधार नहीं उन सजाओं को विभाग किसी पर थोप नहीं सकता।
हालांकि यह बात हर पुलिस अधिकारी को पता होती है कि रिश्वत लेना और देना दोनों जुर्म है बावजूद इसके पुलिस कर्मी अगर रिश्वत लेते हुए पकडे जात हैं तो इसका यह मतलब नहीं होता कि उनके विभाग के उनके वरिष्ठ अधिकारी उसके लिए उनपर नियंत्रण नहीं रख पाते और इस बात को आधार बना कर उनके खिलाफ ऐसे फैसले विभाग सुनाए जो कानून की किसी किताब में है ही नहीं।तत्कालीन नेहरू नगर सीनियर पीआई धनंजय भास्कर बागायतकर नें BOMBAY LEAKS से बात करते हुए कहा कि मैंने किसी भी अधिकारी को रिश्वत लेने की इजाजत नहीं अगर किसी ने रिश्वत ली तो यह उसकी जवाबदही है जिस पुलिस कर्मी ने रिश्वत ली उसकी वीडियो रिकार्डिंग के आधार पर उसके खिलाफ कार्रवाई की गई है उनके खिलाफ ACB ने भी शिकायत दर्ज की है। बागायतकर ने अपने ऊपर हुई विभागी कार्रवाई को गलत बताते हुए कहा कि दर असल उनके साथ यह कार्रवाई यानी जबतक वह रिटाएर ना हों तबतक उनके वेतन से पैसे काटने का मतलब यह है कि जबतक वह रिटाएर नहीं होंगे उनपर यह दाग लगा रहेगा और इस दौरान उनका एसीपी का प्रमोशन था जो कि इस तरह की सजा सुनाने की वजह से वह प्रमोशन रुक गया।
इस बारे मे ज्वाइंट सीपी एल ऐंड ओ देवेन भारती ने कहा कि धनंजय भास्कर बागायतकर के खिलाफ जो कार्रवाई की गई है वह वेतन ऐक्ट के अनुसार की गई है।
धनंजय भास्कर बागायतकर विभागी कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हैं और इस मामले को लेकर उनके वकील राजेश पांचल ने MAT मे दस्तक दी है अब देखना यह होगा कि क्या MAT पुलिस विभाग की इस कार्रवाई को सही करार देती है या गलत।पांचल ने कहा कि हमें उम्मीद है कि मुंबई पुलिस विभाग की ओर से सुनाई गई इस सजा को MAT गलत करार देगा।
मामले की तफ्सील
मामला मुंबई के नेहरू नगर थाने का था जहां पुलिसवालों पर हफ्ता वसूली का आरोप लगा है। दरअसल इस इलाके में अपने घरों में रहते थे उन घरों की मरम्मत के लिए किसी भी काम से पहले उन्हें पुलिसवालों को पैसे देने पड़ते थे।ऐसे ही एक मामले में जर्जर हो चुके एक घर की जब मरम्मत की जा रही थी तब ये पुलिस वाले वहां हफ्ता वसूलने के लिए पहुंचे।इसी दौरान उनकी तस्वीरों को वीडियो कैमरे में कैद कर लिया गया।
मुंबई पुलिस आयुक्त सत्यपाल सिंह ने इसे शर्मनाक घटना करार देते हुए विभागीय जांच के आदेश दे दिए हैं।इस रिश्वतखोरी का खुलासा कार्यकर्ता कासिम खान द्वारा किया गया।वीडियो में उपनगर कुर्ला में स्थित नेहरू नगर पुलिस स्टेशन में कनिष्ठ पुलिस कर्मियों जिनमें ज्यादातर सिपाही थे उन्हें रिश्वत लेते हुए देखा गया था।
पुलिस आयुक्त ने हालांकि यह भी महसूस किया कि पुलिस कर्मियों को धन लेने के लिए उकसाया भी गया। उन्होंने कहा वीडियो फुटेज और दृश्यों को देखने से लगता है कि पुलिसकर्मियों को धन लेने के लिए उकसाया भी गया।मामले की गंभीरता को देख इस मामले की जांच ऐंटी करप्शन ब्युरो को सौंपी गई थी।
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