शाहिद अंसारी
नासिक: हाल ही में यशवंत राव चव्हान ओपेन यूनिवर्सिटी के वॉइस चांसलर माणिक राव सालुंके के ज़रिए इस्तीफे को लेकर जिस तरह से मामला सुर्खियों में रहा उसे देख फिर एक बार यशवंत राव चव्हान ओपेन यूनिवर्सिटी में शिक्षा माफियाओं का राज कायम हो गया है।सालुंके के इसतीफ़े कीअसल वजह की जब हमने पड़ताल की तो चौंका देने वाला सच सामने आया।
वी.सी सालुंके के इस्तीफे की सही वजह जानकर आप हैरान हो जाऐंगे कि आखिर इस यूनिवर्सिटी में ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से वीसी को इस्तीफा देना पड़ा।Bombay Leaks ने इस मामले की बड़ी बारीकी से जांच की जिसके बाद पता चला कि यशवंत राव चव्हान ओपेन यूनिवर्सिटी में शिक्षा माफियाओं का एक बहुत बड़ा रैकेट लंबे समय से अपने पांव पसारे बैठा था जिसे सालुंके के आने के बाद खतम कर दिया गया और इसी वजह से शिक्षा माफियाओं के साथ साथ शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े को भी वह खटकने लगे और आखिर में वह मजबूर होकर इस्तीफा देकर चले गए।
दर असल यूनिवर्सिटी में लंबे समय से शिक्षा माफियाओं के ज़रिए हो रहे करप्शन को खतम करने के लिए सालुंके ने सब से पहले यूनिवर्सिटी के अंतर्गत होने वाली परिक्षाओं के प्रश्नपत्र दूसरे राज्यों से छपवाने शुरू किए और हर साल 40 लाख से भी ज़्यादा परिक्षा के पेपर को परिक्षा के तुरंत बाद ही स्कैन करने की प्रक्रिया शूरू कर दी।परिक्षार्थियों के ज़रिए दिए गए उत्तर कापी को सेंट्रलाइज़ असेसमेंट प्रोग्राम (CAP) के माध्यम से उसकी जांच कर उनके नंबर दिए जाने लगे परिक्षा में धांधली को रोकने के लिए उठाया गए इस कदम से शिक्षा माफिया को एक बड़ा झटका लगा।पहले शिक्षा माफियाओं की ओर से सब से बड़ी और अहम गड़बड़ी इसी उत्तर कॉपी के साथ होती थी जो इस सिस्टम (CAP) के आने के बाद पूरी तरह से बंद हो गई थी।परिक्षार्थियों के ज़रिए उत्तर पुस्तिका खाली छोड़ कर उसे शिक्षा माफियाओं के ज़रिए बाद में भर कर मन चाहे नंबर दिए जाते थे और इसके लिए शिक्षा माफिया परिक्षार्थियों से मोटी रकम वसूल करते थे।सालुंके के आने के बाद इस गोरख धंधे पर यूनिवर्सिटी के ज़रिए शिकंजा कसे जाने के बाद शिक्षा माफियाओं के लिए सालुंके गले की हड्डी बन गए।हालांकि इस गोरख धंधे को फिर से शुरू करने के लिए शिक्षा माफियाओं ने बहुत कोशिश की लेकिन नए सेंट्रलाइज़ असेसमेंट प्रोग्राम (CAP) की वजह से उनकी दाल नहीं गल सकी। क्योंकि इसी प्रोग्राम के ज़रिए जो स्कैन कॉपी की जाती थी उसी स्कैन कॉपी को कंप्युटर से जांच कर उसी के आधार पर ऑनलाइन मार्क्स दिए जाते थे।
शिक्षा माफियाओं के ज़रिए महाराष्ट्र भर में तकरीबन 2500 सेंटर इस यनिवर्सिटी के खोले गए थे जिन में एडमीशिन के नाम पर पहले ही पैसे वसूल कर लिए जाते थे और उस रकम को शिक्षा माफिया काफी समय तक मनचाहे तरीके से अपने लिए इस्तेमाल करते थे और काफी समय बीत जाने के बाद यूनीवर्सिटी को पैसे भेजते थे या कई बार भेजते ही नहीं थे जिसको सालुंके ने बंद करवा दिया और यह नियम लागू कर दिया कि अब पैसे सीधे यूनिवर्सिटी में ही पहले जमां किए जाऐं।उसके बाद यूनिवर्सिटी उन 2500 सेंटर को अपनी तरफ से पैसों का भुगतान करेगी।इस बदले हुए नियम के बाद शिक्षा माफियाओं का दुकानदारी पूरी तरह से ठप हो गई थी।क्योंकि शिक्षा माफिया इस रकम को अपने पास नहीं रख सके और न ही उसका इस्तेमाल अपने निजी किसी काम में कर सकें।
यूनिवर्सिटी में बोगस कर्मचारियों की भर्ती बड़े पैमाने पर हो रही थी।सालुंके के आने के बाद जब इसकी जांच की गई तो पता चला कि तकरीबन 17 लोग बोगस तरीके से यूनिवर्सिटी में उन्हें अपात्र होते हुए भी भर्ती किया गया।इसके लिए शिक्षा माफियाओं के ज़रिए लोगों से बड़ी रकम वसूली जाती थी।वीसी सालुंके के आने के बाद इस मामले की जांच की गई तो पता चला कि 17 ऐसे लोग हैं जो उस गाइडलाइंस में फिट ही नहीं बैठते।जिसके बाद इन 17 बोगस कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया।
मार्च 2016 को स्थानीय बीजेपी एमएलए सीमा हिरे ने अपने समर्थकों के साथ इन बोगस 17 लोगों के लिए वीसी सालुंके के चैंबर मे घुस कर उन्हें रखने के लिए मजबूर किया लेकिन वह नहीं माने जिसके बाद सीमा अहिरे और उनके समर्थकों ने उनके साथ गाली गलोच और बदतमीज़ी की।मामले को देख वीसी ने स्थानी पुलिस थाने गंगापुर में शिकायत दर्ज कराई लेकिन 6 महीने बीत जाने के बाद आज तक इस मामले में पुलिस ने राजनीतिक दबाव के चलते किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की।बोगस कर्मचारियों को निकाले जाने का यह मामला यहीं नहीं थमा जूलाई के महीने में शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े के साथ इस मामले को लेकर मंत्रालय में सालुंके की मीटिंग हुई। जिसके बाद उन्होंने उन 17 बोगस लोगों को वापस काम पर नियुक्त करने का आग्रह किया।लेकिन वीसी के लगातार इंकार करने के बाद तावड़े ने उनके ही खिलाफ़ इंक्वाएरी के बात कही उसके बाद भी उन्होंने 17 बोगस लोगों को काम पर नहीं रखा और दबाव से तंग आकर इस्तीफा दे दिया।हालांकि उन्होंने अपने इस्तीफे में अपने द्वारा यूनिवर्सिटी में जो कार्य करना चाहते थे विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों के युवकों के लिए जो वोकेशनल कोर्सेस को पूरा न किए जाना उसके अलावा वह कार्य जिसको उन्होंने पूरा करने की कोशिश की लेकिन वह नहीं कर सके सका जिक्र उन्होंने किया।
लेकिन सच्चाई यह है कि उनके इस्तीफे की सब से बड़ी वजह यह है कि शिक्षा माफियाओं के साथ शिक्षा मंत्री का दबाव और शिक्षा माफियाओं की बंद हुई दुकानदारी जिसको लेकर सालुंके ने सख्त कदम उठाए।और शिक्षा माफियाओं की दुकानदारी बंद हो गई।अब जब उन्होंने इस्तीफा तो दे दिया है तो यकीनन वनह दुकानदारी जो अब तक बंद पड़ी थी वह फिर से चल पड़ेगी और शिक्षा माफिया शिक्षा मंत्री के सहयोग से फिर से शिक्षा का वह गोरख धंधा करना शुरू कर देंगे जिसे सालुंके ने बंद करवाया था।
सालुंके के छोटे से कार्यकाल मे ही यूनिवर्सिटी की सालाना इंकम में 50 करोड़ से भी ज़्यादा बढ़ोतरी हुई है लेकिन शिक्षा माफियाओं के चलते उन्होंने इस यूनिवर्सिटी में इसतीफा देने के बाद इदौंर में स्किल यूनिवर्सिटी में बतौर वीसी का कार्यभार संभाला।अपनी ईमानदारी और कर्तव्य के प्रति पहचाने जाने वाले सालुखें राजस्थान सेंट्रल यूनिवर्सिटी मे भी बतौर वीसी कार्यरत रहे।राज्य सरकार के इस रवय्ये को देख हम मात्र सालुंके ही नहीं बल्कि राज्य भर की जूसरी यनिवर्सिटियों के वीसी भी तंग आचुके हैं क्योंकि शिक्षा माफियाओं और राज्य सरकार अपनी वोट बैंक को लेकर उन्हें सहयोग करती रही इसलिए इससे नाराज़ कुछ सोशल वर्कर जल्द ही गवर्नर से मिलकर मुबंई हाईकोर्ट में दस्तक देने वाले हैं।
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