मुंबई:मुंबई हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब ऐंटी करप्शन ब्युरो कोर्ट परिसर में रिश्वत खोरों को पकडने के लिए ट्रैप नहीं लगा सकती इसके लिए उन्हें कोर्ट से इजाजत लेनी पडेगी।आदेश के अनुसार कोर्ट के काम करने का तरीका दूसरे विभाग से काफी अलग है।कोर्ट परिसर में वकील और उनके क्लर्क मौजूद रहते हैं वह अक्सर कैश पैसे लेते हैं खासकर उस वक्त कैश पैसों की रसीद नहीं देते। अक्सर कई मामलों में कोर्ट कर्मचारियों की मदद लेनी पडती है और उस समय कोई भी उनपर रिश्वत का आरोप लगा सकता है कि वह उनसे रिश्वत मांग रहा है।कोर्ट के काम काज करने का तरीका दूसरे विभाग से बिलकुल अलग होता है इसलिए उन्हें रिश्वत खोरी के मामले मे फसाना भी आसान होता है।अगर पुलिस को बिना इजाजत इन जगहों पर ट्रैप लगाने की इजाजत दी जाए तो यह कोर्ट और इंसाफ के लिए एक चुनौती है।आदेश के अनुसार कोर्ट परिसर में रिश्वत खोरी के ट्रैप के लिए अगर इजाजत ली जाएगी तो पुलिस को किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होगी।
लेकिन इस आदेश के बाद विशेष रूप से महाराष्ट्र ऐंटी करप्शन ब्युरो की कार्रवाई पर जैसे रोक लग गई हो एसीबी के लिए यह उसकी आजादी छीनने के जैसे है।किसी भी ट्रैप के लिए किसी विभाग से इजाजत लेना उतना ही मुशकिल है जितना कार्रवाई के बाद उस आरोपी के खिलाफ केस चलाने में दिक्कत होती है।क्योंकि ऐसे ना जाने कितने मामले एसीबी के रुके हुए हैं जिनको कोर्ट में चलाने के लिए ए.सी.बी उन आरोपियों के विभाग से सेंक्शन रिपोर्ट मांगती हैं लेकिन वह विभाग अपने रिश्वत खोर कर्मचारियों और अधिकारियों को बचाने के चक्कर में ए.सी.बी को सेंक्शन रिपोर्ट ही नहीं भेजते।जिसका नतीजा एसीबी की कार्रवाई के बाद भी ऐसे आरोपी खुले आम घूमते रहते हैं अगर यहीं ऐंटी करप्शन ब्युरो को मामले को कोर्ट मे चलाने की आजादी मिल जाए तो यह विभाग पूरी तरह से आजाद हो और किसी भी विभाग से इसे सेंक्शन रिपोर्ट की भीक नहीं मांगनी पडेगी।इस तरह से रिश्वत खोरों पर कानून का शिंकजा आसानी से कसा जासकता है।
पूर्व आईपीएस अधिकारी और वरिष्ठ वकील वाई.पी सिंह ने कहा कि इस तरह का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही दिया था लेकिन कोर्ट परिसर में और पूरी कोर्ट में रिश्वत खोरों को पकडने के लिए एसीबी को कोर्ट से इजाजत लेनी होगी यह चौका देने वाला आदेश है।पहले जो आदेश आए थे वह कोर्ट कर्मचारियों के लिए थे लेकिन यह आदेश पूरे कोर्ट परिसर के लिए है।इस आदेश के बाद अब हर विभाग के लोग जो रिश्वत लेना चाहते होंगे वह कोर्ट परिसर मे ही रिश्वत तलब करसकते हैं।वह भी बेखौफ होकर क्योंकि अगर एसीबी कोर्ट परिसर में उनपर कार्रवाई करना चाहेगी तो सबसे पहले एसीबी को कोर्ट से इजाजत लेनी पडेगी और यह प्रक्रिया काफी लंबी है।कोर्ट से इजाजत लेने की इस प्रक्रिया का पालन करने का कोई आरोपी इंतेजार नहीं करेगा।इस तरह से दूसरे विभाग के लोग रिश्वत लेने के लिए इस आदेश का गलत फाएदा भी उठाऐँगे।वाई.पी सिंह ने कहा कि इस आदेश को चैंलेज करना चाहिए क्योंकि यह आदेश ए.सी.बी की कार्रवाई पर बट्टा लगा रहा है।और उसकी मेहनत पर पानी फेरने का काम कर रहा है।अगर इस तरह से आदेश जारी कर ए.सी.बी की आजादी छीनी गई तो रिश्वत खोरों पर ए.सी.बी लगाम कैसे लगाए गी। ए.सी.बी की कार्रवाई यह जाहिर करती है कि रिश्वत खोर हर जगह अपना काम कर जाते हैं चाहे वह कोई भी जगह हो।
31 दिसंबर साल 2010 में वरली स्तिथ चैरिटी कमिश्नर के दफ्तर में चैरिटी कमिश्नर को पांच लाख की रिश्वत लेते ऐंटी करप्शन ब्युरो ने रंगे हाथों गिरफ्तार किया था।इस कार्रवाई में असिंस्टेंट चैरिटी कमिश्नर की भी गिरफ्तारी हुई थी।साल 2011 में मुबंई हाई कोर्ट की ही महिला मेडिकल आफीसर को भी ऐंटी करप्शन ब्युरो नें उस समय गिरफ्तार किया था जब उसने एस.आई.टी के एक क्लर्क से मेडिकल बिल को पास करने के लिए रिश्वत तलब की थी।जनवरी 2014 को धुले की अदालत मे काम करने वाले एक क्लर्क को सर्टीफाइड कापी देने के बदले मे रिश्वत मांगे जाने पर एसीबी नें गिरफ्तार किया।इस तरह से पूरे राज्य भर मे ऐसे कई मामले हैं जो कोर्ट के कर्मचारी या कोर्ट परिसर मे रिश्वत ली गई और उसके लिए शिकायत मिलने पर ऐंटी करप्शन ब्युरो नें अपना जाल बिछाया और उन्हें रंगे हाथों गिरफ्तार किया।लेकिन अब ऐसा नहीं होगा अब ऐंटी करप्शन ब्युरो को कोर्ट के परिसर में किसी भी तरह के ट्रैप लगाने के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी पडेगी और रिश्वत लेने वाला कोर्ट का कर्मचारी हो या कोर्ट के बाहर का ऐंटी करप्शन ब्युरो बिना कोर्ट की इजाजत के उस पर कार्रवाई नहीं कर सकती।
दूसरी सबसे खास बात यह कि अबतक कोर्ट मे रिश्वत खोरी के मामले मे पकडे गए आरोपी अब इस आदेश को आधार बनाकर अपने आपको बेगुनाह बताने की कोशिश करेंगें क्योंकि यह आदेश उनके लिए डूबते को तिनके का सहारा जैसे है।ऐंटी करप्शन ब्युरो की कार्रवाई में अक्सर समय को लेकर बहुत सावधानी बरती जाती है क्योंकि किसी भी ट्रैप को कामयाब बनाने के लिए ऐंटी करप्शन ब्युरो के पास समय बिलकुल नहीं होता शिकायतकर्ता और और आरोपी की बातचीत के आधार पर ही जाल बिछाया जाता है और ऐसे समय में अगर ऐंटी करप्शन ब्युरो कोर्ट से इजाजत के लिए पत्र लिखती है तो ऐसे लोगों पर लगाम लगाना बहुत ही मुशकिल होगा।
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