शाहिद अंसारी
मुंबई: अनेक करोड़पतियों के ‘काले को सफेद’ करने में लिप्त बड़े बैंकों ने अब आम आदमी के विश्वास को कैसे तोड़ने का काम किया है वह अब सनसनीखेज ढंग से उजागर हो रहा है। बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद निरव मोदी के द्वारा किए गए घपलों ने फिर एक बार झकझोर कर रख दिया। देश में आज भी ऐसी हजारों कंपनियां हैं जिन्होंने बड़ी बैंकों के लाखों करोड़ के कर्ज डकारे बैठे हैं जो देश के वार्षिक बजट से भी ज्यादा है इस पर हैरान करदेने वाली बात यह है कि बड़े बैंक कुछ नहीं कर रहे हैं।
‘Bombay Leaks’ के पास मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि ऐसे घोटालेबाज बकायादारों की फेहरिस्त काफी लंबी है। इनमें केएसएल ग्रुप, एलएमएल लि. सहित 1,129 बकायादार कंपनियों के अनेक नाम शामिल हैं जिन्होंने सैकड़ों करोड़ रुपए के लोन विभिन्न प्रतिष्ठित सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों जिनमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और उसके रिजनल सहयोगियों, बैंक ऑफ बड़ोदा, इलाहाबाद बैंक और अन्य से लिए हैं। इनमें से अनेक कंपनियां अपने को दिवालिया बता रही हैं जिन्हें इन बैंकों ने आम आदमी के पैसे लोन के नाम पर दे दिए हैं। ‘Bombay Leaks’ के पास मौजूद फेहरिस्त में उन बकायादारों के नाम हैं जिन्होंने 300 करोड़ रुपए से अधिक की रकम ले रखी है। इसके साथ ही उन लोगों के नाम भी हैं जिन्होंने 500 करोड़ रुपए से अधिक राशि दबाए बैठे हैं। ब्याज सहित इनकी देनदारी इससे भी कहीं अधिक है।
पिछले वर्ष मार्च में रिजर्व बैंक में सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से 500 करोड़ और उसके अधिक कर्ज लेने वालों की सूची सौंपी थी। तीन महीने बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने बता दिया था कि “रिजर्व बैंक के साथ किसी भी बैंक के रिश्ते विश्वसनीय नहीं हैं।” इस कारण मात्र जग-हसाई से बचने के लिए सही जानकारियां छुपाई नहीं जा सकती। सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक से बकाएदारों के नाम गोपनीय रखने की उनकी नीति जानना चाहा था इसकी विस्तृत जानकारी जनहित में थी।
कोर्ट ने पाया था कि 57 ऐसे बकाएदार हैं जिन्होंने 85,000 करोड़ रुपए दबा रखे हैं ऐसे बड़े बकाएदारों के नाम सार्वजनिक करने की मांग विभिन्न लोग और संस्थाओं की ओर से होते रहे हैं। यहां तक कि विरोधी दलों ने भी सरकार से बकाएदारों की सूची का खुलासा करने की मांग की है लेकिन सत्तारूढ़ दल ने इस संबंध में कोई ठोस पहल नहीं की है। यही वजह है कि निरव मोदी जैसे घपलेबाज़ों को पनपने का मौका मिल गया।
‘Bombay Leaks’ की सूची में 12 करोड़ से 300 करोड़ रुपए तक के लोन लेने वाली कंपनियां भी शामिल हैं। इनमें लाखों रुपए लेने वाली कंपनियां भी हैं जिनकी रकम ब्याज सहित बढ़ कर कई करोड़ तक जा पहुंची है। इन बकायों का कुल जोड़ का आंकड़ा लाखों करोड़ों में है। मुंबई की रजत फार्माकेम लि. का बैंकों का बकाया 29,195 लाख रुपए (291.95 करोड़ रुपए) है बृहद पाइप निर्माता पीएसएल लि. ( जिसके ब्रांच भारत और यूएई में हैं ) ने भी 30,155 लाख रुपए (301.55 करोड़ रुपए) के लोन (केनरा बैंक के) नहीं चुकाए।
समूह वाली कंपनियां हैं बड़ी खिलाड़ी
इसी प्रकार कोलकाता की रामसरूप इंडस्ट्रीज अपनी समूह की कंपनियों के लिए अलग-अलग बैंकों से भारी रकम लोन में लेकर दबाए बैठी है। रामसरूप इंडस्ट्रीज लि. ने आईडीबीआई बैंक से 20,035 लाख रुपए (200.35 करोड़ रुपए), रामसरूप लौह उद्योगपति ने ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के 9,086 लाख रुपए और रामसरूप इंडस्ट्रियल कार्पोरेशन ने इंडियन ओवरसीज बैंक से 2,478 लाख रुपए कर्ज ले रखे हैं। यही कहानी रामा एडुकेशन सोसायटी की है उसने 10,623 लाख रुपए पीएनबी से और 3,143 लाख सिंडिकेट बैंक से लोन ले रखे हैं यह नाम मात्र उदाहरण के लिए हैं जबकि ऐसे नामों की सूची लंबी है।
7 वर्षों में 4.95 लाख करोड़ रुपए गबन किए बड़े घोटालेबाजों ने
मध्यम साइज की घोटालेबाज कंपनियों के पाप के घड़ों का ढक्कन खुल चुका है घोटालों के उन्हीं दस्तावेजों में दर्ज उनकी सूची के साथ उनके हजारों करोड़ के घोटाले हैं। दस्तावेज बताते हैं कि अनेक कंपनियां 300 करोड़ से अधिक के लोन बैंकों से लेकर बैठी हैं और यह सारे लोन “बैड लोन” बन गए हैं.
घोटालेबाज में विजय माल्या और उनकी बंद कंपनी किंगफिशर एयरलाइन समेत 50 ऐसी कंपनियों ने 40,000 करोड़ रुपए से अधिक के कर्ज डकार लिए हैं और यह कर्ज “बैड लोन” बन गए हैं। पिछले 7 वर्षों में 2007 से 2013 तक के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से ये बैड लोन अब 4,94,836 करोड़ बन गए हैं। इसी तरह निजी क्षेत्र के बैंकों से 2009 से 2013 तक के चार वर्षों के बैड लोन 46,000 करोड़ तक जा पहुंचे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और निजी क्षेत्र के बैंकों से यह आंकड़े मिला दिए जाएं तो बैड लोन का यह आंकड़ा 5.41 लाख करोड़ हो जाएगा. केवल 30 बैड लोन का रकम ही 70,300 करोड़ रुपए होता है. यह स्थिति देश की अर्थव्यवस्था के गंभीर निहितार्थ का संकेत देती है।
कर्ज डकारने वालों की सूची में सबसे ऊपर विजय माल्या है, जिसके बंद कंपनी किंगफिशर एयरलाइन्स ने विभिन्न बैंकों से 2673 करोड़ झटके हैं। दूसरे क्रम में है विन्सम डायमंड कंपनी लि. जिसके 2660 करोड़ रुपए के कर्ज बैड लोन बने हुए हैं। इसके अलावा इलेक्ट्रोथर्म इंडिया लि., जूम डेवल्पर्स, स्टर्लिंग बॉयोटेक लि. और एस.कुमार नेशनवाइड उन 50 बड़े घोटालेबाज बकाएदारों में शामिल हैं, जिन्होंने 40,528 करोड़ की कुल रकम विभिन्न बैंकों से झटक कर हड़प लिए हैं।
बैंकों ने 2,04,000 करोड़ की रकम बट्टे खाते में डाले
ये आंकड़े अर्थशास्त्रियों को भी झकझोरने वाले तो हैं ही आम आदमी को भी व्याकुल कर उन्हें गहरा आघात पहुंचाने वाले हैं जो अच्छे दिन आने की अभी भी आस लगाए बैठे हैं। 2001 से 2013 तक कुल 2,04,000 करोड़ रुपए के बैड लोन बट्टे खाते में डाले गए। पिछले वर्ष नवंबर में ही एसबीआई द्वारा विजय माल्या के किंगफिशर एयरलाइन्स के साथ ही कुल 7,000 करोड़ रुपए के बैड लोन को बट्टे खाते में डालने के मामले में विवाद उठ खड़ा हुआ तो सरकार और एसबीआई ने सफाई दिया कि यह सारा लोन खत्म नहीं किया गया है इन सभी बकाएदारों की देनदारी कायम है लेकिन उन 2,04,000 करोड़ रुपयों का बैंकों द्वारा अपने को ही चूना लगा लेना (नुकसान कर लेना) यह साबित करता है कि बकाएदारों के प्रति यह ‘आपराधिक उदारता’ देश की अर्थव्यवस्था को कितना गंभीर नुकसान पहुंचा चुका है।
22,000 करोड़ पर बैठे 4 बकाएदार
सार्वजनिक बैंकों के 1 करोड़ से अधिक खातों में अटकी 68,000 करोड़ रुपए की रकम एनपीए हो चुकी हैं। इनमें से 22,000 करोड़ रुपए केवल 4 खाताधारकों के हैं। इसी तरह निजी क्षेत्र के 4 बड़े खाताधारकों के 4,600 करोड़ रुपए के कर्ज बैड लोन बन गए हैं। इसके बावजूद बैंकों ने लगातार अनदेखी करते हुए मशीनी तौर पर (आदतन) 1,40,000 करोड़ रुपए के कर्ज को 2008 से 2013 के बीच बैड लोन में बदलने का प्रावधान कर डाला। यह वही समय था, जब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था इतिहास की सबसे गंभीर आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रही थी।
एक ही वर्ष में कुल एनपीए डबल हो गया
सार्वजनिक बैंकों के कुल एनपीए की बात करें तो दस्तावेज के अनुसार केवल इलाहाबाद बैंक से ही मार्च 2013 तक का कुल एनपीए 5,137 करोड़ रुपए था। आश्चर्य की बात है कि मार्च 2012 में भी इलाहाबाद बैंक का एनपीए 2,058 करोड़ रुपए था जो एक ही वर्ष में डबल से भी अधिक हो गया था। इसी तरह पंजाब नेशनल बैंक का मार्च 2012 का 8,719 करोड़ रुपए का एनपीए मार्च 2013 में बढ़कर 13,465 करोड़ रुपए हो गया है इन दोनों बैंकों का एनपीए मिला कर सभी सार्वजनिक बैंकों के कुल एनपीए मार्च 2013 में 1,64,461 करोड़ रुपए जा पहुंचे। इसी दौरान निजी क्षेत्र के बैंकों का एनपीए भी 21,069 करोड़ रुपए हो गया था।
और होने वाले महाघोटाले
आम आदमी अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा बैंकों से निकालने की जद्दोजहद में लगा है। भारी-भरकम रकमों के कर्जखोर घपलेबाज़ी की वारदात को अंजाम देने की फिराक में हैं। सरकार के उच्च पदों पर बैठे लोगों को अच्छी तरह पता है कि बैंकों के भारी-भरकम रकम डुबंत खाते में चले गए हैं और बैंकर जानबूझ कर इन बड़े ‘कर्ज डकारने वालों’ के विरुद्ध कार्रवाई करने से बच रहे हैं लेकिन पता चला है कि उन्हें डिफॉल्टर्स की सूची से निकाल कर बचाने के लिए उनके कर्ज के पुनर्गठन की चाल चल कर खस्ता हालात को फिर से गुलाबी रंग दिए जाने की कवायद जारी है।
सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के बैंकों के बकाएदारों के बकाए की रकम पर गौर करने से बिल्कुल साफ हो जाता है कि सरकार ऐसे लगातार बढ़ते जा रहे बैड लोन को सार्वजनिक करने से क्यों बचती रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार बैंक कर्ज के बकाएदारों की सूची लोगों को नहीं बता रही, जबकि देश के लोग कैशलेस समाज बनाने की सरकार की ओर से लादी गई तकलीफों को झेले जा रहे हैं।यह बड़ी चौंकाने वाली घिनौनी बात है कि न तो रिजर्व बैंक न संबंधित बैंक और न केंद्र सरकार के संबंधित अधिकारियों ने ही ऐसे भयानक कर्ज घोटाले को रोकने के लिए कोई कदम उठाना जरूरी नहीं समझा। एक ओर बैंकों ने अपनी खाली हो गई तिजोरियां नोटबंदी की आड़ में आम आदमी को पसीनों की गाढ़ी कमाई से भर लिया दूसरी ओर बैड लोन की उस बड़ी रकम को वापस लाने की जहमत से भी बच गए जिस रकम से देश की पूरी अर्थव्यवस्था अगले कई वर्षों तक आसानी से चल सकती थी। सरकार जहां फिलहाल विमुद्रीकरण (नोटबंदी) को सही साबित करने में व्यस्त है बैंक अपनी ही योजनाओं में लगे हैं। हाल के दिनों में देशभर में विभिन्न पेशे के लोगों और व्यापारियों के पास से पकड़ी जा रही करोड़ों-करोड़ की रकमों को जहां पूरी मिडिया चमकाने में लगी है वहीं बैंकों की “काले को सफेद’” करने के खेल भी ऊंचाई पर है। यह मामले इस तथ्य के साक्षी हैं कि बैंकों के उस रेशमी कोने में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है जहां से प्रतिष्ठित बड़े वित्तीय संस्थानों के बॉस सब कुछ संचालित कर रहे हैं। अब जबकि इन महाघोटाले के ढक्कन फूटने वाले हैं तो घोटाले में लिप्त बकाएदारों और प्राधिकारी वर्ग को बेड़ियों में जकड़ देने की जरूरत है अच्छे दिन आएं या न आएं आम आदमी की बस यही अपेक्षा है।
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