शाहिद अंसारी
मुंबई: रोहंगिया में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार को लेकर इस बार कांग्रेस की ओर से माइनारिटी सेल के कांग्रेस कॉर्पोरेटर मुफ्ती सुफियान वनू ने मुंबई पुलिस से इजाज़त मांगी थी और मुंबई के आज़ाद मैदान पुलिस थाने ने इजाज़त दे दी थी लेकिन इससे पहले कि कांग्रेसी धरना प्रदर्शन करते मुंबई पुलिस ने इजाज़त रद्द कर दी । इस तरह से मुंबई पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की सूझ़बूझ की वजह से साल 2012 में हुआ आज़ाद मैदान दंगा फिर से एक बार होते होते रह गया जिसके मास्टरमाइंड आज भी पुलिस की पहुंच से बाहर हैं और दंगे में जो करोड़ों रूपए का नुकसान हुई उसकी भरपाई आज तक नहीं की गई और दूसरी बार फिर से तांडव करने के लिए प्रशासन तुला हुआ था।हालांकि बलात्कारी बाबा राम रहीम के गुर्गों के द्वारा जो दंगा किया गया है वह ज़खम अभी भी ताज़ा हैं।
दर असल जब इस रोहंगिया में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार को लेकर जब आज़ाद मैदान पुलिस थाने ने इजाज़त दे दी तब तक कुछ नहीं लेकिन जैसे ही 7 सितंबर 2017 के इस धरना प्रदर्शन के लिए सोशल साइट्स पर मैसेज और वीडियो फोटो भेज कर लोगों को आज़ाद मैदान में पहुंच कर विरोध प्रदर्शन करने के लिए आने की अपील की तो वैसे ही मुंबई पुलिस के कान खड़े होगए और इस बात का एहसास हो गया कि इसका अंजाम क्या हो सकता है और मुंबई पुलिस के डीसीपी मनोज शर्मा की जानकारी में जैसे ही यह बात सामने आई उन्होंने लॉ ऐंड ऑर्डर को मद्देनज़र रखते हुए 6 सितंबर 2017 को सिर्फ़ 24 घंटे पहले विरोध प्रदर्शन के लिए दी गई इजाजत को रद्द करते हुए धरना प्रदर्शन के लिए मना कर दिया।जिसकी वजह से फिर एक बार साल 2012 का आज़ाद मैदान दंगा दोबारा होते होते रह गया।
दरअसल मुंबई पुलिस ने जब इस बात की इजाज़त दी तो उन्हें 11 अगस्त साल 2012 का वह दिन याद नहीं रहा जब आजाद मैदान दंगों और हत्या का आरोपी तोड़ु-ए-नागपाड़ा तथाकथित स्वघोषित धर्मधुंरधर भूमाफिया श्री मुईन अशरफ़ उर्फ़ बाबा बंगाली और उसके गुर्गों के द्वारा जो तांडव किया गया था।जब बर्मा में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार को लेकर बंगाली बाबा के गुर्गों ने जम कर उत्पाद मचाया और खुद बंगाली आरोपी नंबर 7 बना लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार के रहते बंगाली अब तक गिरफ्तार नही हुआ।
क्राइम ब्रांच की जांच के बाद बंगाली बाबा समेत उन 17 लोग जिनके नाम एफआईआर में थे उनमें कई लोगो की गिरफ्तारी संभव थी लेकिन इस दौरान तत्कालीन सरकार ने फिर मुस्लिम वोट बैंक को बरकार रखने के लिए बंगाली समेत उन सारे लोगों को गिरफ्तारी से बचा कर ऐसे मुस्लिम युवाओं का नाम आरोपियों की फहरिस्त में पहले लिख दिया जो बंगाली बाबा जैसे आकाओं के ज़रिए जुमा के दिन मस्जिद में एलान करने के बाद आजाद मैदान में पहुंचे थे और वहां तांडव किया।
हालांकि यह वही लोग हैं जो इन 17 लोगों के बुलाने पर ही आज़ाद मैदान पहुंचे थे लेकिन जब मुसीबत आई तो धर्म के ठेकेदारों ने अपने आप को ऐसे बचा लिया कि नामज़द एफआईआर होते हुए भी तत्कालीन सरकार से साठ गाँठ कर ली और गिरफ्तारी उनकी हुई जिनके घरों में दो वक्त की रोटी खाने के लाले पड़ रहे।इस तरह से आज़ाद मैदान दंगों के मुख्य आरोपियों की फहरिस्त में शामिल आजाद मैदान दंगों के आरोपी तथाकथित स्वंय घोषित धर्मधुंधर श्री मुईन अशरफ उर्फ बाबा बंगाली लोगों के बीच खुद का दामन पाक साफ बता कर और खुद को दंगों से अलग कह कर अपना नाम आरोपियों की फहरिस्त से निकालने का दावा करता है लेकिन यह दावा सरासर झूट है बल्कि वह दंगो के मुख्य आरोपियों से एक है जिस पर तत्कालीन सरकार इसलिए मेहरबान थी कि इसे इस शर्त पर मोहलत दी जाएगी कि बंगाली वोट बैंक के ज़रिए सरकारा का समर्थन करेगा।लेकिन जब सरकार ही नहीं रही और मौजूदा सरकार को इसके वोट बैंक की ज़रूरत ही नहीं तो अब इसके सर पर फिर एक बार मुसीबत मंडलाने लगी है क्योंकि बीजेपी सरकार को न तो इसके जैसे पाखंडियों की ज़रूरत है और न इस तरह के पाखंडी दंगाइयों के सहारे चुनाव के मैदान में उतरेगी।
अब सरकारी बीजेपी की है और ऐसे में यह कयास लगाया जा रहा था कि कहीं फिर से सरकार के सामने बर्मा की आड़ से 2012 का तरह तर्ज़ पर तोड़ फोड़ कर फिर से सरकार के सामने शक्ति प्रदर्शन करने की कहीं तय्यारी तो नहीं थी जिसे पुलिस ने रद्द कर ने वाली मुसीबत को टाल दिया।
11 अगस्त साल 2012 को मुंबई के आज़ाद मैदान दंगे को अंज़ाम दिया गया इस दंगे को अंजाम देने के लिए धर्म के तथाकथित ठेकेदार और तथाकथित मुस्लिम नेताओं ने ठेकेदारी ली थी।जिसके बाद समाज के ठेकेदारों की अपील के बाद मुस्लिम युवकों को बरमा और म्यांमार की फोटो वीडियो दिखा कर जम कर उत्पाद करने के लिए उकसाया गया और उन्होंने इन ठेकेदारों की नापाक मंशा को अंजाम देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।मामले में मुबंई के तत्कालीन आज़ाद मैदान सीनियर पीआई दीपक ढोले की शिकायत पर आईपीसी की धारा के तहेत हत्या, दंगा भड़काने , सरकारी संपत्ती को नुकसान पहुंचाने,महिला पुलिसकर्मियों के साथ छेड़छाड़ करने के साथ साथ 20 से ज्यादा धाराओं के तहेत 4017 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी।इन 4017 लोगों में 17 लोगों के खिलाफ़ नामज़द FIR दर्ज की गई थी।मामले की गंभीरता को देख जांच के लिए मुंबई क्राइम ब्रांच को नियुक्त किया गया।इस पूरी घटना को लेकर 1000 से भी ज्यादा लोगों की गवाही रिकार्ड की गई इनमें मुंबई पुलिस के अदना से आला पुलिसकर्मियों और वरिष्ठ अधिकारियों के बयान कलमबंद किए गए।
क्राइम ब्रांच की जांच के चार महीने बाद ही इस मामले में 3,384 पृष्ठों का आरोप पत्र दाखिल किया गया जिसमें 57 लोगों को आरोपी बनाया गया था।गैर सरकारी संगठन मदीना-तुल-इल्म के महासचिव रजा को हत्या, साजिश, दंगा भड़काने, सार्वजनिक एवं निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने तथा अवैध रूप से सभा आयोजित करने का आरोपी बनाया गया ।इस मामले में चार्जशीट दाखिल होने तक 50 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।इनमें से चार आरोपियों को महिला पुलिसकर्मियों के साथ छेड़छाड़ का आरोपी बनाया गया।
म्यांमार में मुसलमानों पर कथित अत्याचार के खिलाफ आजाद मैदान में रैली का आयोजन किया गया था।आज़ाद मैदान में भीड़ को इकट्ठा करने के लिए मुंबई और आस पास के इलाकों में जुमा के दिन मस्जिदों में एलान किया गया था ताकि ज्यादा से ज्यादा भीड़ इकट्ठा की जासके और इस भीड़ का अदाज़ा मुंबई पुलिस को बिल्कुल भी नहीं था यहां तक कि पुलिस को यह तक नहीं पता चल सका कि इस रैली की फंडिग कहां से हुई थी।भड़की हिंसा में दो लोग मारे गए थे और 65 से अधिक घायल हो गए थे।इसमें 2.72 करोड़ रुपये की सरकारी संपत्ति का नुकसान हुआ था।पुलिस ने आजाद मैदान हिंसा के करीब चार महीने बाद इस मामले में रैली के आयोजक मौलाना अहमद रजा को गिरफ्तार किया था।
इस बात का कि मुख्य आरोपियों ने तत्कालीन सरकार से सांठ गांठ कर ऐसी अफवाह उड़ाई कि उनका नाम आरोपियों की फहरिस्त से हटा दिया गया है।कौम के ठेकेदारी करने वाले धंधे बाज़ कठमुल्ले , नेता , और समाज को सुधारने का बेड़ा उठाने वाले वह लोग जिनके खिलाफ़ आज़ाद मैदान दंगों में नामज़द एफआईआर हुई थी उन्होंने आज़ाद मैदान से लेकर मामला कोर्ट में पहुंचने तक अपना नाम बड़ा ही सफाई से उस एफआईआर से गायब करवाने की अफवाह उड़ाई जिसे खुद आज़ाद मैदान पुलिस थाने के सीनियर पीआई दीपक ढोले की शिकायत पर दर्ज कर उन 17 लोगों के खिलाफ़ नामज़द एफआईआर दर्ज की गई थी।हालांकि दंगों के मामले में आरोपियों की तरफ़ से कानूनी लड़ाई लड़ने वाले एडोकेट वहाब खान का कहना है कि इन 17 लोगों के नाम पुलिस की गलती की वजह से लिखे गए हैं लेकिन इस बात भी झूटी तब साबित हुई जब मुंबई क्राइम ब्रांच के एक वरिष्ठ अधिकारी जिन्होंने दंगो की जांच की थी उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि चार्जशीट में जिन आरोपियों के नाम कोर्ट में दाखिल किए गए हैं उसके अलावा उसमें अन्य आरोपियों के बारे में भी लिखा गया जिनकी अब तक गिरफ्तारी नहीं हुई।क्योंकि जिन आरोपियों को मुबंई क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया उनमें अधिकतर के बयान हैं कि उन्होंने मस्जिद में एलान सुना उसके बाद आज़ाद मैदान पहुंचे जबकि कुछ लोगों के सोशल साइट्स के ज़रिए और कुछ लोगों के उनके दोस्तों के जरिए पता चला।
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