शाहिद अंसारी
मुंबई : आज़ाद मैदान दंगों को लेकर 5 साल तक जनता को लॉलीपॉप देने वाले आरोपी नंबर 7 तथाकथित स्वंय घोषित धर्म धुरंधर श्री मुईन अशरफ़ उर्फ़ बाबा बंगाली का नाम आज़ाद मैदान दंगों से निकाला नहीं गया बल्कि बंगाली अभी भी आरोपियों की पहरिस्त में आरोपी नंबर 7 की जगह दर्ज है और आज़ाद मैदान के दंगों में दंगाइयों के खिलाफ़ लगी कोई भी धारा और न ही किसी आरोपी का नाम अबतक नहीं निकाला गया बल्कि मामले में बंगाली बाबा समेत उन सब लोगों के नाम हैं जिनके खिलाफ़ नामज़द एफआईआर दर्ज हुई थी और इसका नाम तब तक रहेगा जब तक जांच पूरी नहीं होगी।हालांकि बंगाली बाबा ने तत्कालीन सरकार के समय से लेकर अबतक काफी हाथ पैर मारा लेकिन बंगाली बाबा की दाल नहीं गली और बंगाली का नाम ज्यों का त्यों है।इसलिए बंगाली ने लोगों के बीच यह शगूफ़ा छोड़ा की उसकी खुद की बहुत ही ऊपर तक पहुंच है और वह इस तरह के दंगों से अपने आप को बचा कर सीधे साधे लोगों जेल भेजवा सकता है।लेकिन इस पूरे मामले को लेकर Bombay Leaks ने जब पड़ताल की तो बंगाली बाबा झूटा साबित हुआ।आज भी मुंबई के सेशन कोर्ट में केस नंबर 166/2015 में मोजूद फाइल में बंगाली बाबा का भी नाम मुख्य दंगाईयों की फहरिस्त में दर्ज है।बंगाली बाबा पर दंगे के साथ साथ हत्या का भी मामला दर्ज है।Bombay Leaks के हाथ लगे दस्वाज़ों से खुलासा हुआ है कि बंगाली बाबा ने तत्कालीन सरकार के रहते कोशिश बहुत की कि एफआईआर और चार्लेजशीट उसका नाम निकाल कर उन लोगों का नाम डाल दिया जाए जिन्हें बंगाली ने दंगा करने के लिए बुलाया था।लेकिन बंगाली बाबा की यह कोशिश कामयाब नहीं हो पाई और बंगाली का नाम निकलने से पहले कांग्रेस सरकार ही सत्ता से निकल गई।
बीते पांच सालों से पुलिस उन हजा़रों आरोपियों में से उनको जिन्हें गरीब और कमज़ोर थे उनके खिलाफ़ सुबूत भी ढूंढ ली उन्हें गिरफ्तार भी किया लेकिन बंगाली बाबा समेत जिन 17 लोगों के खिलाफ़ नामज़द एफआईआर दर्ज की गई उन्हें आज तक गिरफ्तार नही ंकर सकी।हमेशा देखा गया है कि पुलिस जिन आरोपियों के नाम एफआईआऱ में दर्ज करती है उनपर पहले कार्रवाई करती है लेकिन इस मामले में पूरा खेल उलटा रहा।जबकि मामले में हत्या जैसी संगीन धाराऐं लगाई गई थीं ध्यान रहे दंगे के दौरान गायब हुए पुलिस के हथियार मुंब्रा से मिले थे जहां मुंब्रा में ही बंगाली का मदरसा है।इस लिए इस बात में कोई शक नहीं कि बंगाली के मदरसे के भी युवक इसमे ंशामिल थे जो बंगाली के इशारे पर दंगा करने पहुंचे थे।
कब हुआ था दंगा
11 अगस्त साल 2012 आज ही के दिन मुंबई के आज़ाद मैदान दंगे को अंज़ाम दिया गया इस दंगे को अंजाम देने के लिए धर्म के तथाकथित ठेकेदार और तथाकथित मुस्लिम नेताओं ने ठेकेदारी ली थी।जिसके बाद समाज के ठेकेदारों की अपील के बाद मुस्लिम युवकों को बरमा और म्यांमार की फोटो वीडियो दिखा कर जम कर उत्पाद करने के लिए उकसाया गया और उन्होंने इन ठेकेदारों की नापाक मंशा को अंजाम देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।मामले में मुबंई के तत्कालीन आज़ाद मैदान सीनियर पीआई दीपक ढोले की शिकायत पर आईपीसी की धारा के तहेत हत्या, दंगा भड़काने , सरकारी संपत्ती को नुकसान पहुंचाने,महिला पुलिसकर्मियों के साथ छेड़छाड़ करने के साथ साथ 20 से ज्यादा धाराओं के तहेत 4017 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी।इन 4017 लोगों में 17 लोगों के खिलाफ़ नामज़द FIR दर्ज की गई थी।मामले की गंभीरता को देख जांच के लिए मुंबई क्राइम ब्रांच को नियुक्त किया गया।इस पूरी घटना को लेकर 1000 से भी ज्यादा लोगों की गवाही रिकार्ड की गई इनमें मुंबई पुलिस के अदना से आला पुलिसकर्मियों और वरिष्ठ अधिकारियों के बयान कलमबंद किए गए।
क्राइम ब्रांच की जांच के चार महीने बाद ही इस मामले में 3,384 पृष्ठों का आरोप पत्र दाखिल किया गया जिसमें 57 लोगों को आरोपी बनाया गया था।गैर सरकारी संगठन मदीना-तुल-इल्म के महासचिव रजा को हत्या, साजिश, दंगा भड़काने, सार्वजनिक एवं निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने तथा अवैध रूप से सभा आयोजित करने का आरोपी बनाया गया ।इस मामले में चार्जशीट दाखिल होने तक 50 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।इनमें से चार आरोपियों को महिला पुलिसकर्मियों के साथ छेड़छाड़ का आरोपी बनाया गया।
म्यांमार में मुसलमानों पर कथित अत्याचार के खिलाफ आजाद मैदान में रैली का आयोजन किया गया था।आज़ाद मैदान में भीड़ को इकट्ठा करने के लिए मुंबई और आस पास के इलाकों में जुमा के दिन मस्जिदों में एलान किया गया था ताकि ज्यादा से ज्यादा भीड़ इकट्ठा की जासके और इस भीड़ का अदाज़ा मुंबई पुलिस को बिल्कुल भी नहीं था यहां तक कि पुलिस को यह तक नहीं पता चल सका कि इस रैली की फंडिग कहां से हुई थी।भड़की हिंसा में दो लोग मारे गए थे और 65 से अधिक घायल हो गए थे।इसमें 2.72 करोड़ रुपये की सरकारी संपत्ति का नुकसान हुआ था।पुलिस ने आजाद मैदान हिंसा के करीब चार महीने बाद इस मामले में रैली के आयोजक मौलाना अहमद रजा को गिरफ्तार किया था।
दंगे के तार जुड़े थे कराची से
इस मामले में मुंबई के आजाद मैदान में हुई हिंसक दंगे के संबंध में एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए इंटेलिजेंस ब्यूरो ने महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्रालय को सूचना दी थी कि आजाद मैदान में दंगे के पीछे अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की भूमिका थी।गृह मंत्रालय के एक सीनियर ऑफिसर के अनुसार सूचना और प्रसारण मंत्रालय की यह सूचना अंर्तराष्ट्रीय टेलीफोनिक बातचीत की रिकार्डिंग द्वारा एकत्रित जानकारी के आधार पर था।इस रिपोर्ट में बताया गया था कि आजाद मैदान में कैसे हिंसा फैलाई गई।इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी साफ किया गया था कि इस दंगे में किसकी साजिश थी।इंटेलिजेंस ब्यूरो ने यह रिपोर्ट महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर आर पाटिल को दी थी।आपको बताते चलें कि घटना के एक दिन बाद ही महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौव्हाण ने मीडिया से कहा था कि हो सकता है इस दंगे की साजिश विदेश में रची गई हो।टेलीफोन पर रिकार्ड की गई बातचीत इस बात का पुख्ता सबूत बन गया था कि इस हिंसा के पीछे विदेशी आतंकवादियों का हाथ था। आईबी के जिन अफसरों ने इस बातचीत का अध्ययन किया है उन्होंने टेलीफोन नंबरों और विदेश में बैठे नामी अंडरवर्ल्ड सदस्यों की आवाजों की पहचान की थी।अंर्तराष्ट्रीय टेलीफोन कॉल्स का अनैलसिस करने पर पता चलता है कि पाकिस्तान के दो शहरों से मुंबई में मोबाइल फोन पर कॉल किया गया था।कुछ कॉल्स 10 अगस्त को की गई जबकि ज्यादातर कॉल्स 11 अगस्त को की गई थीं।उल्लेखनीय है कि 11 अगस्त को आजाद मैदान में दंगा हुआ था।रिकॉर्ड किये गये फोन कॉल्स से पता चलता है कि पाकिस्तान से फोन कर किसी गैंग को निर्देश दिया गया कि वो हिंसा फैलायें।उन्हें फोन पर गाइड किया गया कि वो प्रदर्शनकारियों में घुलमिल जायें और सही समय देख हिंसा शुरु कर दें।अधिकारियों की मानें तो इस हिंसा का उद्देश्य था कि शहर में लोगों के दिलों में दहशत फैलाना और शहर के विभिन्न हिस्सों में साम्प्रदायिक दंगे करवाना।
बंगाली ने खुद को क्लीनचिट की उड़ाई थी अफ़वाह
इस बात का कि मुख्य आरोपियों ने तत्कालीन सरकार से सांठ गांठ कर ऐसी अफवाह उड़ाई कि उनका नाम आरोपियों की फहरिस्त से हटा दिया गया है।कौम के ठेकेदारी करने वाले धंधे बाज़ कठमुल्ले , नेता , और समाज को सुधारने का बेड़ा उठाने वाले वह लोग जिनके खिलाफ़ आज़ाद मैदान दंगों में नामज़द एफआईआर हुई थी उन्होंने आज़ाद मैदान से लेकर मामला कोर्ट में पहुंचने तक अपना नाम बड़ा ही सफाई से उस एफआईआर से गायब करवाने की अफवाह उड़ाई जिसे खुद आज़ाद मैदान पुलिस थाने के सीनियर पीआई दीपक ढोले की शिकायत पर दर्ज कर उन 17 लोगों के खिलाफ़ नामज़द एफआईआर दर्ज की गई थी।हालांकि दंगों के मामले में आरोपियों की तरफ़ से कानूनी लड़ाई लड़ने वाले एडोकेट वहाब खान का कहना है कि इन 17 लोगों के नाम पुलिस की गलती की वजह से लिखे गए हैं लेकिन इस बात भी झूटी तब साबित हुई जब मुंबई क्राइम ब्रांच के एक वरिष्ठ अधिकारी जिन्होंने दंगो की जांच की थी उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि चार्जशीट में जिन आरोपियों के नाम कोर्ट में दाखिल किए गए हैं उसके अलावा उसमें अन्य आरोपियों के बारे में भी लिखा गया जिनकी अब तक गिरफ्तारी नहीं हुई।क्योंकि जिन आरोपियों को मुबंई क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया उनमें अधिकतर के बयान हैं कि उन्होंने मस्जिद में एलान सुना उसके बाद आज़ाद मैदान पहुंचे जबकि कुछ लोगों के सोशल साइट्स के ज़रिए और कुछ लोगों के उनके दोस्तों के जरिए पता चला।
दंगाईयों के साथ कांग्रेस का मुस्लिम वोट बैंक फंडा
क्राइम ब्रांच की जांच के बाद बंगाली बाबा समेत उन 17 लोग जिनके नाम एफआईआर में थे उनमें कई लोगो की गिरफ्तारी संभव थी लेकिन इस दौरान तत्कालीन सरकार ने फिर मुस्लिम वोट बैंक को बरकार रखने के लिए बंगाली समेत उन सारे लोगों को गिरफ्तारी से बचा कर ऐसे मुस्लिम युवाओं का नाम आरोपियों की फहरिस्त में पहले लिख दिया जो बंगाली बाबा जैसे आकाओं के ज़रिए जुमा के दिन मस्जिद में एलान करने के बाद आजाद मैदान में पहुंचे थे और वहां तांडव किया।
हालांकि यह वही लोग हैं जो इन 17 लोगों के बुलाने पर ही आज़ाद मैदान पहुंचे थे लेकिन जब मुसीबत आई तो धर्म के ठेकेदारों ने अपने आप को ऐसे बचा लिया कि नामज़द एफआईआर होते हुए भी तत्कालीन सरकार से साठ गाँठ कर ली और गिरफ्तारी उनकी हुई जिनके घरों में दो वक्त की रोटी खाने के लाले पड़ रहे।इस तरह से आज़ाद मैदान दंगों के मुख्य आरोपियों की फहरिस्त में शामिल आजाद मैदान दंगों के आरोपी तथाकथित स्वंय घोषित धर्मधुंधर श्री मुईन अशरफ उर्फ बाबा बंगाली लोगों के बीच खुद का दामन पाक साफ बता कर और खुद को दंगों से अलग कह कर अपना नाम आरोपियों की फहरिस्त से निकालने का दावा करता है लेकिन यह दावा सरासर झूट है बल्कि वह दंगो के मुख्य आरोपियों से एक है जिस पर तत्कालीन सरकार इसलिए मेहरबान थी कि इसे इस शर्त पर मोहलत दी जाएगी कि बंगाली वोट बैंक के ज़रिए सरकारा का समर्थन करेगा।लेकिन जब सरकार ही नहीं रही और मौजूदा सरकार को इसके वोट बैंक की ज़रूरत ही नहीं तो अब इसके सर पर फिर एक बार मुसीबत मंडलाने लगी है क्योंकि बीजेपी सरकार को न तो इसके जैसे पाखंडियों की ज़रूरत है और न इस तरह के पाखंडी दंगाइयों के सहारे चुनाव के मैदान में उतरेगी।
क्या कहते हैं वरिष्ठ अधिकारी
पूर्व आईपीएस अधिकीर एस.एस.सोराडकर का कहना है कि दंगों में तो असल लोग अभी भी पुलिस की पहुंच से बाहर हैं और उन पर शिकंजा कसना ज़रूरी है लकिन जिस तरह से पुलिस ने गिरफ्तार युवकों पर ही हत्या की धारा लगा दी है यह भी अन्याय है इस तरह से पुलिस ने जो किया यह वही बात हो गई कि किसी चीज़ को खत्म नहीं बल्कि इस तरह से अन्याय करने से उसे बढ़ावा दिया जा रहा है।फिर तो सीधा साधा आदमी भी जिसका कोई गुनाह न हो और उस पर हत्या की धारा थोपी जाती है तो हमें फिर उनसे सुधरने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए हमें यह मान लेना चाहिए की हम एक और आतंकवाद को खतम करने के नाम पर उसे बढ़ावा दे रहे हैं।
वहीं आज़ाद मैदान दंगे के जांच अधिकारी तत्कालीन एसीपी और मौजूदा डीसीपी यशवंत वटकर ने बताया कि यह महेज़ अफवाह है कि बंगाली बाबा समेत उन 17 लोगों के नाम निकाल दिए गए हैं जिनके खिलाफ़ नामज़द एफआईआर हुई है बल्कि वह लोग मामले में आरोपी हैं और जांच का दाएरा जैसे जैसे सख्त होगा तो उन पर भी कार्रवाई होगी वह चाहे कोई भी हो।
एडोकेट वहाब खान ने Bombay Leaks से बात करते हुए कहा कि एक आरोपी फहीम है जिस दिन मामले की सुनावई रहती है तो वह कहता है कि मेरे आने से नुकसान होगा और मेरे परिवार का नुकसान होगा क्योंकि कोई और कमाने वाला नहीं है और यही हाल हर आरोपी का है।
हालांकि कि मौजूदा सरकार के आते ही बंगाली ने दल बदल कर उनकी चाटुकारिता करने की काफी केशिश की लेकिन मौजूदा सरकार ने इसके चरित्र चित्रण को देख इसे भाव नहीं दिया।इस बात को देख बंगाली ने मौजूदा सरकार की चापलूसी के लिए एक और दांव खेला लेकिन कामयाब न हो सका।बंगाली ने खुद को मुसलमानों के पेशवा घोषित कर यह अपील की कि इस बार 15 अगस्त को मस्जिद और मदरसे में तिरंगा फहराया जाए।जिसको लेकर मुस्लिम उलमाओं में और समाज में ज़बरदस्त नाराज़गी पाई गई क्योंकि बंगाली की अपील के बाद कोई देशभक्ति का सर्टिफिकेट इसे क्यों क्योंकि आज़ादी के बाद से ही मुसलमान हर जगह आजादी की खुशियां मनाते हैं जिसके बारे में शायद बंगाली को पता ही नहीं।वहीं दूसरी तरफ़ मौलाना अब्दुस्सलाम कासमी ने कहा कि कल का आया हुआ बंगाली अब मुसलमानों को देशभक्ति सिखाएगा अगर इतना ही हमदर्द है तो जाए सरकार की आंखों में आंखे डालकर आरएसएस के मुख्यालय पर तिरंगा फहरा के दिखाए।
इस दंगे के ही दिन राज्य के मुख्यमंत्री की ओर से हज हाउस में इफ्तार पार्टी रखी गई थी और दंगों की वजह से तत्कालीन माइनारिटी मिनिस्टर आरिफ नसीम की कुर्सी खतरे में आगई थी नसीम खान ने इन 17 लोगों में से धर्म के ठेकेदार आजाद मैदान दंगों के आरोपी तथाकथित धर्म धुरंधर श्री मुईन अशरफ उर्फ बाबा बंगाली को फोन कर जम कर खरी खोटी सुनाई थी और लंबे समय तक बंगाली बाबा को दूर रखा और बातचीत बंद कर करीब फटकने नहीं दिया।लेकिन नई सरकार आने के बाद आरिफ नसीम खान बंगाली बाबा के उस कब्जा की गई विवादित जगह पर आ रहे जिसको लेकर बंगाली बाबा की बहुत थू थू हुई है।क्योंकि अब वह सारे लोग जिनके सर पर सत्ताधारी सरकार के द्वारा संकट के बादल मंडला रहे हैं वह एक हो रहे हैं और इस उम्मीद से हैं की सियासत की इस दुनिया में वह धर्म और पाखंड का चोला पहनने वालों के साथ होंगे तो शायद सत्ताधारी सरकार द्वारा मंडला रहे संकट के बादल छट जाऐंगे।हालांकि आरिफ नसीम खान ने Bombay Leaks से बात करते हुए कहा कि उस समय उनके और बंगाली के रिश्तों मे कड़वाहाट थी लेकिन अब नहीं है।
दरअसल बंगाली बाबा आजाद मैदान रैली के पहले एमएलसी बनने का सपना देख रहा था लेकिन दंगे के बाद एमएलसी का सपना साकार न हो सका और सपना साकार होने से पहले ही राज्य और केंद्र दोनों जगह से कांग्रेस की सत्ता ही चली गई।अब बंगाली फिर से अपनी भूमिका बनाने के लिए कांग्रेस का दामन छोड़ बीजेपी के तलवे चाटने शुरु कर दिए लेकिन पढ़े लिखे न होने की वजह से भाव नहीं मिल रहा है।इस समय बीजेपी से माइनारिटी मोर्चा के अध्यक्ष हैदर आजम और अशीश शेलार का दामन थामे हुए थे लेकिन अब अशीश शेलार ने जब बंगाली का स्वार्थ और असलियत जान ली तो उन्होंने अपना दामन छुड़ा लिया लेकिन बंगाली ने इस कमी को पूरी करने के लिए और अपनी भौंकाल बनाने के लिए राज पुरोहित की जी हुजूरी करनी शुरू कर दी।अब बंगाली को यह बात कौन समझाए कि राज पुरोहित को खुद बीजेपी कितना अहमियत देती है जो वह बंगाली को नेता बनाऐंगे।यही वजह है कि बंगाली बाबा के हाल में हुए कार्यक्रम में हैदर आजम और राज पुरोहित दोनो मुख्यमंत्री को बुलाने में असमर्थ रहे क्योंकि मुख्यमंत्री के पास स्टेट इंटिलिजेंस की रिपोर्ट पहुंच चुकी थी जिसमें बंगाली का कच्चा चिच्ठा मौजूद है।
चूंकि तत्कालीन सरकार का मुस्लिम फेस कोई नहीं था और बंगाली को कांग्रेस सरकार बतौर मुस्लिम फेस इस्तेमाल कर रही थी और बंगाली इस ख्वाब में जी रहे थे कि उनका असरो रुसूख बढ़ रहा है और इसी गलत फहमी में मुसलमानों का एक तबक़ा जी रहा था कि कांग्रेसी बंगाली के दरबार में आते हैं तो वाकई में यह बहुत पहुंची हुई हस्ती होंगी और लोगों की इस सोच को लेकर सरकार यह सोचती थी की इनके पास वोट बैंक काफी है।लेकिन इसका भी भांडा तब फूटा जब बंगाली खुद के भाई सय्यद अली अशरफ़ उर्फ़ बाबा भौंकाली को मुंब्रा से जिताने में कामयाब न हो सका।जिससे राजनीतिक गलियारों में बंगाली को लेकर जो वोट बैंक का भ्रम था वह भी टूट गया था।हालांकि दंगों के समय बंगाली की पोल खोलने वाली बीजेपी सरकार के प्रवक्ता माधव भंडारी ने कहा कि वह जल्द ही इस मामले में राज्य के मुख्यमंत्री से मिलकर बंगाली के खिलाफ़ कार्रवाई का बिगुल बजाऐंगे।
अब जिस प्रकार से पुलिस विभाग के आला अधिकारी,हारी हुई सरकार के एमएलए अमीन पटेल,आरिफ नसीम खान,बाबा सिद्दीकी बंगाली के पास पुहंच रहे हैं और वह इस बात की आस लगाए बैठे हुए हैं कि बंगाली के मुस्लिम फेस को वैसे ही इस्तेमाल करेंगे जैसे उनकी सत्ता के समय इस्तेमाल करते आए हैं और बंगाली बाबा ऐसा कोई चमत्कार करदेंगे जिससे फिर से कांग्रेस की सराकार राज्य में आजाएगी तो फिर से इनकी चांदी हो जाएगी।हालांकि सत्ताधारी सरकार बीजेपी की तरफ़ से बंगाली बाबा को कोई पूछने वाला नही है क्योंकि बीजेपी को इस बात का पता है कि मुसलमान बीजेपी को वोट तो देंगे नहीं तो उन्हें बंगाली बाबा जैसे फेस की ज़रूरत ही नहीं है।लेकिन सवाल यहा उठता है कि आखिर पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारी और बीजेपी के एक दो नेता बंगाली की पास पहुंच कर क्या साबित करना चाहते हैं ? क्या वह आजाद मैदान दंगे की घटना पूरी तरह से भूल चुके हैं ? क्या महिला पुलिसकर्मियों के साथ जो वारदात अंजाम दी गई मुंबई पुलिस ने नज़रअंदाज कर दिया ? क्या इस तरह के बंगाली बाबाओं के इशारे पर इस तरह के दंगे होते रहेंगे और पुलिस मात्र लाचार दिखाई देगी ? आखिर सत्ताधारी सरकार ने आईबी की रिपोर्ट पर ध्यान क्यों नहीं दिया ? इस दंगे के दौरान तत्कालीन सरकार का वह मुस्लिम गॉडफादर कौन था ? जिसने दंगों की आड़ में बंगाली को फ्रंट पर रख कर अपनी रोटी सेकने की कोशिश की ? जब एल के एडवानी के खिलाफ बाबरी मस्जिद मामले में दो दशकों के बाद कार्रवाई हुई तो क्या बंगाली पर कार्रवाई होने के लिए 2 दशक का इंताज़र करना होगा ? यह सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब उस जनता को चाहिए जो दंगाईयों के जुल्म का शिकार हुई है जिसका सरगना बाबा बंगाली था।
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