Bombay Leaks Desk
मुंबई: महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक बहुल ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए केंद्र सरकार ने साढ़े सत्रह करोड़ रुपये राज्य सरकार को दिया लेकिन इसमें से एक भी पैसा अल्पसंख्यक ग्रामीण क्षेत्रों के निर्माण पर खर्च नहीं किया गया।यह बहुत ही शर्मनाक बात है इससे जहां अल्पसंख्यकों के विकास के प्रति राज्य सरकार की मंशा स्पष्ट हो गई वहीं हमारे चुने हुए मुस्लिम लोकप्रतिनिधि भी असफल साबित हुए कि उन्होंने मुस्लिम ग्रामीण बहुल क्षेत्रों के विकास के लिए जो पैसा आया था उसे राज्य सरकार से लेकर ग्रामीण मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के विकास पर खर्च करते। मगर ऐसा नहीं हुआ और यह फंड यूं ही वापस चला जाएगा। उक्त आरोप लगाते हुए अवामी विकास पार्टी के प्रमुख शमशेर खान पठान ने कहा कि उन्हें यह जानकारी आरटीआई के माध्यम से प्राप्त हुई हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि यह राशि बहुत बड़ी मायने नहीं रखती लेकिन कम से कम यह पूरी राशि साल २०१५-१६ में खर्च हो जाना चाहिए थी।लेकिन इस कोष का एक रुपया भी अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए उपयोग नहीं हुआ इस से यह साफ जाहिर होता है कि राज्य सरकार अल्पसंख्यकों के खिलाफ है और उनके कल्याण के लिए कुछ भी करने को तैयार नहीं है और यह सब कुछ हम देख रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है की इसकी जिम्मेदारी हमारे चुने हुए विधायकों पर होता है जिन्होंने यह राशि सरकार के कोष से प्राप्त करने की कोशिश ही नहीं की। शमशेर खान पठान ने कहा कि अगर यह विधायक चाहते तो यह पूरी राशि अल्पसंख्यकों के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए उपयोग में होती।
अवामी विकास पार्टी के अध्यक्ष ने कहा कि इससे यह बात महसूस होती है कि या तो हमारे चुने हुवे लोकप्रतिनिधियों को भी इस बात की शायद जानकारी ही नहीं थी और यदि उन्हें इस कोष की जानकारी थी तो वह यह राशि सरकार से निकाल ही नहीं सके तो प्रश्न यह उठता है कि अल्पसंख्यकों ने उन्हें चुनकर विधानसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा है क्या वह सही है?यह प्रतिनिधि अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए सरकार के सामने कोई विरोध प्रकट नहीं कर रहे हैं और सरकार पर दबाव नहीं डाल रहे हैं।फिर ख्वामख्वाह मुसलमानों के भावनात्मक मुद्दों को उजागर कर के लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं। शमशेर खान पठान ने कहा कि नागपुर का शीतकालीन सत्र जारी है लेकिन यह विधायकों खामोश बैठे रहते हैं और अल्पसंख्यकों के लिए कोई ठोस काम इस सरकार से कराकर नहीं लेते हैं।
शमशेर खान पठान ने राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष के कार्यप्रणाली पर भी कड़ा सवाल उठाते हुए कहा कि अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष का प्रदर्शन भी शून्य है वह सिर्फ बयानबाजी के अलावा और दावतों में उपस्थिति देने के अलावा कोई काम नहीं करते। उनके इस नाकारेपन की वजह से पिछले साल अवामी विकास पार्टी की महिला सेल ने उन्हें चूड़ियाँ दी थीं और अब आने वाले दिनों में उन्हें साड़ी और लिप्सटिक देने वाली हैं। उन्होंने कहा कि चुने हुवे लोकप्रतिनिधियों को राजनीति न करते हुए सरकार द्वारा दी गई सभी योजनाओं का बारीकी से अवलोकन करके कैसे वह अल्पसंख्यकों को लाभ पहुंचा सकते हैं इस बारे में गहराई से जानकारी प्राप्त करना बहुत आवश्यक है। शमशेर खान पठान ने कहा कि यदि सरकार इन विधायकों की नहीं सुनती है तो उन्हें रास्ते पर उतर कर सरकार की अक्षमता पर विरोध करके अल्पसंख्यकों को लाभ पहुंचाना चाहिए और यदि वह सरकार को झुकाने में अक्षम हैं तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए और एक मजबूत व्यक्ति को चुनकर सदन में भेजना चाहिए जो सरकार के जबड़े से अल्पसंख्यकों का हिस्सा छीन सके।
अवामी विकास पार्टी के अध्यक्ष शमशेर खान पठान ने आगे कहा कि जो भावनात्मक मुद्दा लेकर हमारे नेता मुसलमानों से वाहवाही लेने की कोशिश कर रहे हैं क्या यह सरकार पूरा करेगी। हम यह बात यहाँ स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम इन मुद्दों से कतई सहमत हैं लेकिन सोचने की बात है कि यह सरकार मुसलमानों को कुछ देना ही नहीं चाहती है वह हमारी पसंद का खाना छीन चुकी है तो वह नागपुर स्टेशन का नाम हज़रत ताजुद्दीन औलिया के नाम से कैसे बदल सकती है और ईद मीलादालनबी को पूरे राज्य में शराबबंदी लगा देगी जिसकी मांग हमारे नेताओं ने किया है। हमारा सवाल है कि क्या भावनात्मक मांगों को उठा कारसे अल्पसंख्यकों का विकास होगा। हमारा फिर प्रश्न है कि पिछली सरकार ने अपने दस साल के शासनकाल में मुसलमानों को आरक्षण से वंचित रखा और अंतिम छणों पर केवल नाम के लिए आरक्षण दिया। वह आज मगरमच्छ के आँसू बहाकर अल्पसंख्यक समाज केलिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं मैं फिर एक बात दोहराना चाहता हूँ के जब यही लोग केंद्र सरकार में थे तब दंगा विरोधी कानून बनाकर उसे संसद में न रखते हुए इसका वहीं गला घोंट दिया आज सरकार जाने के बाद यही लोग दंगा विरोधी विधेयक बहाल करने के लिए शोर मचा रहे हैं और अल्पसंख्यकों को बेवकूफ बना रहे हैं लेकिन अल्पसंख्यक उनके जाल को समझ चूका हैं और आने वाले समय में उन्हें सबक जरूर सिखाएगा।
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